Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Editorial

Part III of the Indian Constitution: The Living Charter of Rights and Liberties

संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा।  1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी।   1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...

मेरे संपादकीय लेख

ग्रीनलैंड की खरीद: एक राजनीतिक खेल या रणनीतिक आवश्यकता? 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया। यह विचार केवल एक व्यावसायिक निर्णय नहीं था, बल्कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक दृष्टिकोण से भी देखा गया। ग्रीनलैंड, जो दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, उत्तरी ध्रुव के पास स्थित होने के कारण आर्कटिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है। इसके प्राकृतिक संसाधन, जैसे खनिज और तेल, और वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण उत्पन्न हो रहे नए शिपिंग मार्ग, इसे किसी भी देश के लिए आकर्षक बनाते हैं। लेकिन, क्या ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव केवल एक राजनीतिक खेल था या यह वास्तव में एक रणनीतिक आवश्यकता थी? राजनीतिक दृष्टिकोण: ग्रीनलैंड डेनमार्क का हिस्सा है, और डेनमार्क ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस प्रस्ताव को अमेरिकी हितों के बजाय, एक वैश्विक स्तर पर मंथन के रूप में देखा जा रहा था। डोनाल्ड ट्रंप का यह विचार राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाला था, खासकर तब जब अमेरिका आर्कटिक क्षेत्र में...

गणित शिक्षण में सुधार की जरूरत

पहले यह माना जाता था कि हम विज्ञान के क्षेत्र में भले ही पीछे हो लेकिन गणित के क्षेत्र में बहुत आगे हैं। नोबेल पुरस्कारों के वितरण के समय हमारे देश में इस संदर्भ में अवश्य चर्चा होती है लेकिन क्या आपको यह पता है कि गणित के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार एबेल अब तक केवल एक भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास एस आर वर्धन (2007 में) को ही प्राप्त है। अर्थात हम गणित के क्षेत्र में भी पिछड़ते चले जा रहे हैं। एक बार आईआईआईटी इलाहाबाद में सेमिनार चल रहा था जिसमें सभी वक्ता नोबेल पुरस्कार विनर थे। वहां दर्शक दीर्घा से एक सवाल पूछा गया कि क्या कारण है कि भारत के लोग गणित और विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे होते हुए भी नोबेल जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों को पाने में पीछे रह जाते हैं? प्रश्नकर्ता का इशारा चयन प्रक्रिया में भेदभाव की तरफ था लेकिन वैज्ञानिकों ने जो जवाब दिया वह सभी भारतीयों की बोलती बंद करने वाला था। उत्तर में यह बात निकलकर आयी कि भारतीय लोग गणित और विज्ञान को अलग अलग करके पढ़ते हैं जिसके कारण वे गणित के अनुप्रयोग को सही से समझ नहीं पाते हैं। भारत में प्योर मैथमेटिक्स पर विशेष...

Advertisement

POPULAR POSTS