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Class 9 – History Chapter 1: The French Revolution

📘 Chapter 1: The French Revolution – Summary 🔰 Introduction: The French Revolution began in 1789 and is one of the most significant events in world history. It marked the end of monarchy in France and led to the rise of democracy and modern political ideas such as liberty, equality, and fraternity . 🏰 France Before the Revolution: Absolute Monarchy: King Louis XVI ruled France with complete power. He believed in the Divine Right of Kings. Social Structure (Three Estates): First Estate: Clergy – privileged and exempt from taxes. Second Estate: Nobility – also exempt from taxes and held top positions. Third Estate: Common people (peasants, workers, merchants) – paid all taxes and had no political rights. Economic Crisis: France was in heavy debt due to wars (especially helping the American Revolution). Poor harvests and rising food prices led to famine and anger among the poor. Tax burden was unfairly placed on the Third Estate. Ideas of Enlightenmen...

गणित शिक्षण में सुधार की जरूरत

पहले यह माना जाता था कि हम विज्ञान के क्षेत्र में भले ही पीछे हो लेकिन गणित के क्षेत्र में बहुत आगे हैं। नोबेल पुरस्कारों के वितरण के समय हमारे देश में इस संदर्भ में अवश्य चर्चा होती है लेकिन क्या आपको यह पता है कि गणित के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार एबेल अब तक केवल एक भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास एस आर वर्धन (2007 में) को ही प्राप्त है। अर्थात हम गणित के क्षेत्र में भी पिछड़ते चले जा रहे हैं। एक बार आईआईआईटी इलाहाबाद में सेमिनार चल रहा था जिसमें सभी वक्ता नोबेल पुरस्कार विनर थे। वहां दर्शक दीर्घा से एक सवाल पूछा गया कि क्या कारण है कि भारत के लोग गणित और विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे होते हुए भी नोबेल जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों को पाने में पीछे रह जाते हैं? प्रश्नकर्ता का इशारा चयन प्रक्रिया में भेदभाव की तरफ था लेकिन वैज्ञानिकों ने जो जवाब दिया वह सभी भारतीयों की बोलती बंद करने वाला था। उत्तर में यह बात निकलकर आयी कि भारतीय लोग गणित और विज्ञान को अलग अलग करके पढ़ते हैं जिसके कारण वे गणित के अनुप्रयोग को सही से समझ नहीं पाते हैं। भारत में प्योर मैथमेटिक्स पर विशेष वर्क किया जाता है जबकि यूरोप और अमेरिका में एप्लाइड मैथमेटिक्स पर अधिक वर्क किया जाता है। इसीलिए भारतीय गणित में पीछे होते जा रहे हैं। दूसरी ओर भारतीय लोग विज्ञान में इसलिए पीछे हैं क्योंकि वे ज्योतिष को भी विज्ञान समझते हैं। यहां के लोग शुद्ध विज्ञान और अर्ध विज्ञान की सीमा रेखा को नहीं समझ पाते हैं इसीलिए वे विश्व स्तरीय रिसर्च में पिछड़ जाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारी उपलब्धियां शून्य है। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का कहना था कि "हमें भारतीयों का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया नहीं तो भौतिक विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतनी तरक्की नहीं हो पाती। " आइंस्टीन के उक्त कथन से स्पष्ट हो जाता है कि गणना करना हमने ही विश्व को सिखाया और हमारे इस ज्ञान का उपयोग करके यूरोप एवं अमेरिका आगे निकल गए जबकि हम पिछड़ गए। आइंस्टीन के कथन का दूसरा अर्थ यह है कि गणित और विज्ञान अंतर्संबंधित हैं। विज्ञान के लिए गणित साधन की तरह है। प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों का परिकलन करना पड़ता है अर्थात गणित को उसके अनुप्रयोग के साथ ही देखा जाना चाहिए लेकिन हमारे देश की विडंबना ऐसी है कि गणित के अच्छे जानकार गणित के अनुप्रयोग को उतने अच्छे से नहीं जानते जितना कि जानना चाहिए। उदाहरण के तौर पर जब विद्यार्थी गणित के शिक्षकों से अवकलन, समाकलन, अवकलन समीकरण और समाकलन समीकरण के अनुप्रयोग पर सवाल उठाते हैं तो शिक्षक बात टाल देते हैं जबकि अनुप्रयोग की चर्चा पहले होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर एक कुएं की गहराई या एक नदी की चौड़ाई बिना रस्सी/फीते के प्रयोग के कैसे ज्ञात करेंगे? इन प्रश्नों को बच्चों के बीच प्रस्तुत किया जाए फिर इन व्यवहारिक प्रश्नों के समाधान हेतु गणित के संबंधित विषयवस्तु की शुरूआत होनी चाहिये। गणित में प्रायोगिक कार्य अवश्य होना चाहिए और यह न केवल प्रयोगशाला तक सीमित हो बल्कि वास्तविक परिस्थितियों में भी इनका प्रयोग दोहराया जाए। उदाहरण के तौर पर ऊंचाई और दूरी से जुड़े सवालों के प्रायोगिक उदाहरण हल कराए जाएं। हमें याद रखना चाहिए कि माउंटेन एवरेस्ट की ऊंचाई ब्रिटिश इंडिया काल में भी अंग्रेज गणितज्ञ नहीं ज्ञात कर पा रहे थे। फिर यह कार्य भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिद्धक को दिया गया था जिन्होंने ऊंचाई और दूरी के सिद्धांत का प्रयोग करके ही माउंटेन एवरेस्ट की ऊंचाई ज्ञात की थी। लेकिन एवरेस्ट नामकरण अंग्रेज अधिकारी के नाम पर हो गया हालांकि राधानाथ सिद्धक के सुझाव पर ही यह नामकरण हुआ था। लेकिन आज के हमारे बच्चे गणित की किताबों के प्रश्न तो हल कर लेते हैं लेकिन यदि उन्हें किसी टावर की ऊंचाई ज्ञात करने के लिए कहा जाए तो वे शायद ही ज्ञात कर पाएं। प्लेटो की एकेडमी यूरोप की पहली एकेडमी मानी जाती है जिसके मुख्य द्वार पर लिखा होता था कि जिसे ज्यामिति नहीं आती उसे एकैडमी में प्रवेश नहीं मिलेगा अर्थात प्लेटो मानता था कि ज्यामिति विद्यार्थियों में चिंतन को विकसित करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है लेकिन आज के स्कूलों में ज्यामिति की अनदेखी की जा रही है। कम ही शिक्षक ज्यामिति प्रमेय से जुड़े प्रश्नों को हल करवाते हैं। बच्चों को केवल सूत्र रटवाकर प्रश्नों को हल करने के शार्ट ट्रिक बताए जा रहे हैं। सूत्रों के डेरिवेशन नहीं बताये जाते। कुछ कोचिंगों में बिना सिर पैर के ऐसे सूत्र बताये जाते हैं जो खतरनाक वायरस की तरह हैं ये विद्यार्थियों की मौलिक चिंतन क्षमता को ही चट कर जा रहे हैं। अतः हमें पुनर्विचार करना ही होगा।

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