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Part III of the Indian Constitution: The Living Charter of Rights and Liberties

संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा।  1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी।   1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...

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 द्विध्रुवीयता का अंत👈

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

समकालीन दक्षिण एशिया👈

अंतर्राष्ट्रीय संगठन

समकालीन विश्व में सुरक्षा

पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन

वैश्वीकरण

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां भाग 1👈

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां भाग 2👈

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां भाग 3👈

एक दल के प्रभुत्व का दौर👈

नियोजित विकास की राजनीति👈

भारत के विदेश संबंध👈

कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियां व पुनर्स्थापना भाग 1👈


कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियां व पुनर्स्थापना भाग 2👈


लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट👈

क्षेत्रीय आकांक्षाएं

भारतीय राजनीति में नए बदलाव👈

मिश्रित प्रश्न सेट 1👈


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