संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा। 1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी। 1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...
वस्तुनिष्ठ प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दें- 1. गोवा को राज्य का दर्जा किस वर्ष मिला? उत्तर-1987. 2. राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक किसी एक तत्व का उल्लेख कीजिए। उत्तर: राष्ट्रीय भावना। 3. भारत को आजादी किस अधिनियम के तहत मिली? उत्तर- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 4. सीमांत गांधी के नाम से किसे जाना जाता है? उत्तर- खान अब्दुल गफ्फार खान को। 5. सीमा आयोग ने सीमा पुनर्ग्रहण की घोषणा कब की? उत्तर- 15 अगस्त, 1947 को। 6. 1947 से पहले कश्मीर का शासक कौन था? उत्तर-हरि सिंह। 7. वर्ष 1955 में गठित भाषा आयोग के अध्यक्ष का नाम बताइये। उत्तर- बी जी खेर। 8. हैदराबाद का भारत में विलय किस वर्ष हुआ था? उत्तर-1948 9. राजभाषा अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया था? उत्तर-1963. 10. उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ ...