संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा। 1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी। 1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...
1999: एक वोट से गिरी वाजपेयी सरकार और शरद पवार का 26 साल बाद खुलासा भारतीय राजनीति के इतिहास में कई घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जिन्होंने सत्ता संतुलन को पूरी तरह से बदल दिया। इनमें से एक सबसे अहम घटना 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का गिरना था, जो मात्र एक वोट से हार गई थी। यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक निर्णायक मोड़ थी, क्योंकि इसके बाद देश में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए। अब, 26 साल बाद, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार ने इस मामले पर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पर्दे के पीछे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण वाजपेयी सरकार गिर गई। उनके इस बयान ने 1999 की उस ऐतिहासिक घटना को फिर से चर्चा में ला दिया है। 1999: वाजपेयी सरकार का अविश्वास प्रस्ताव पृष्ठभूमि: जयललिता का समर्थन वापसी 1998 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार बनी थी, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। लेकिन उनकी सरकार का पूरा अस्तित्व सहयोगी दलों के समर्थन पर निर्भर था। अन्नाद्रमुक ...