संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा। 1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी। 1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...
अरस्तू के राजनीतिक विचार उनके ग्रंथ Politics में विस्तृत रूप से मिलते हैं। उन्होंने राज्य, शासन प्रणाली, नागरिकता, न्याय और कल्याण के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके राजनीतिक विचारों के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं: 1. राज्य का स्वाभाविक विकास (State as a Natural Institution) अरस्तू के अनुसार, मनुष्य स्वाभाविक रूप से एक राजनीतिक प्राणी (Political Animal) है। राज्य परिवार और गांव के विकास का स्वाभाविक परिणाम है। राज्य का उद्देश्य "सर्वोच्च भलाई" (Highest Good) की प्राप्ति है। 2. शासन के प्रकारों का वर्गीकरण (Classification of Governments) अरस्तू ने शासन को दो आधारों पर वर्गीकृत किया: 1. सकारात्मक रूप (Good Forms): राजतंत्र (Monarchy): एक व्यक्ति का राज्य हित में शासन। अभिजाततंत्र (Aristocracy): कुछ श्रेष्ठ व्यक्तियों का राज्य हित में शासन। लोक शासन (Polity): जनता का सामूहिक रूप से राज्य हित में शासन। 2. नकारात्मक रूप (Perverted Forms): अत्याचार (Tyranny): एक व्यक्ति का अपने स्वार्थ के लिए शासन। कुलीनतंत्र (Oligarchy): अमीरों का अपने स्वार्थ के लिए शासन। भीड़तंत्र (De...