संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा। 1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी। 1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...
प्रश्न 1. 1960 का दशक 'खतरनाक दशक' क्यों माना जाता है? उत्तर- 1960 के दशक को युद्ध ,गंभीर आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन जैसी कुछ अनसुलझे समस्याओं के कारण 'खतरनाक दशक' के रूप में लेबल किया गया है, जो लोकतांत्रिक परियोजना की विफलता और यहां तक कि देश के विघटन का कारण बन सकता था। 1- गंभीर आर्थिक संकट: भारत-चीन युद्ध 1962 व भारत-पाक युद्ध 1965 के कारण गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। सरकार ने इसे रोकने के लिए भारतीय रुपये का अवमूल्यन करने का निर्णय लिया, लेकिन इससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई। 2- दो प्रधानमंत्रियों को देश ने खोया: कांग्रेस और देश ने बहुत कम समय में दो प्रधानमंत्रियों को खो दिया। नई प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी एक राजनीतिक नौसिखिया थीं। 3- चौथा आम चुनाव - एक राजनीतिक भूकंप: चौथा आम चुनाव 1967 एक राजनीतिक भूकंप साबित हुआ क्योंकि इसने कांग्रेस को राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर झटका दिया। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के अधिकांश वरिष्ठ नेता और मंत्री चुनाव हार गए। 4- गंभीर ...