संविधान का भाग 3: भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल भूमिका: आज़ादी की साँस, अधिकारों की आवाज़ जब हम भारतीय संविधान को एक “जीवित दस्तावेज़” कहते हैं, तो यह कोई खोखला विशेषण नहीं। यह जीवंतता संविधान के हर पन्ने में बसी है, लेकिन अगर इसका असली दिल ढूंढना हो, तो वह है भाग 3 — मूल अधिकार। ये अधिकार केवल कानूनी धाराएँ नहीं, बल्कि उस सपने का ठोस रूप हैं, जो आज़ाद भारत ने देखा था: एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता, और स्वतंत्रता मिले। भाग 3 वह मशाल है, जो औपनिवेशिक दमन, सामाजिक भेदभाव, और अन्याय के अंधेरे में रोशनी बिखेरती है। आज, जब Pegasus जासूसी, इंटरनेट बंदी, या अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे मुद्दे हमें झकझोर रहे हैं, यह समय है कि हम भाग 3 की आत्मा को फिर से समझें — इसका इतिहास, इसकी ताकत, इसकी चुनौतियाँ, और इसकी प्रासंगिकता। इतिहास: संघर्षों से जन्मा अधिकारों का मणिकांचन मूल अधिकार कोई आकस्मिक विचार नहीं थे। ये उस लंबे संघर्ष की देन हैं, जो भारत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ा। 1928 की नेहरू रिपोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं की नींव रखी। 1931 का कराची प्रस्ताव सामाजिक-आर्थ...
यह लेख "भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India)" पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इसमें चुनाव आयोग की स्थापना, संरचना, कार्यप्रणाली, संवैधानिक प्रावधान, अधिकार, जिम्मेदारियाँ, सुधार और चुनौतियों पर चर्चा की गई है। लेख में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनावों के संचालन में आयोग की भूमिका को भी विस्तार से समझाया गया है। इसके अलावा, ईवीएम, वीवीपैट, आदर्श आचार संहिता और चुनाव सुधारों पर भी प्रकाश डाला गया है। यह लेख भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में चुनाव आयोग के महत्व और उसकी निष्पक्षता को स्पष्ट करता है। भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India) – एक विस्तृत अध्ययन भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां चुनावों के माध्यम से सरकार का गठन होता है। इस चुनावी प्रक्रिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी रूप से संपन्न कराने के लिए भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) कार्य करता है। यह एक संवैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी। चुनाव आयोग की मुख्य जिम्मेदारी लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपराष...