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Directive Principles of State Policy: Guiding India's Vision for a Welfare State

 राज्य के नीति निदेशक तत्व: कल्याणकारी राज्य का मार्गदर्शक दर्शन प्रस्तावना: संविधान की आत्मा का जीवंत हिस्सा भारतीय संविधान का भाग 4, जो अनुच्छेद 36 से 51 तक फैला है, 'राज्य के नीति निदेशक तत्व' (Directive Principles of State Policy – DPSPs) का खजाना है। ये तत्व भारत को एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की ओर ले जाने का सपना दिखाते हैं, जहाँ न केवल राजनीतिक आज़ादी हो, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी हर नागरिक तक पहुँचे। ये तत्व भले ही अदालतों में लागू करवाने योग्य न हों, लेकिन ये संविधान की उस चेतना को दर्शाते हैं जो भारत को समता, न्याय और बंधुत्व का देश बनाने की प्रेरणा देती है।  यह संपादकीय लेख भाग 4 के महत्व, इसके ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भ, इसकी उपलब्धियों और चुनौतियों को सरल, रुचिकर और गहन तरीके से प्रस्तुत करता है। आइए, इस यात्रा में शामिल हों और समझें कि कैसे ये तत्व आज भी भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: स्वतंत्र भारत का नीतिगत सपना जब भारत ने 1947 में आज़ादी हासिल की, तब संविधान निर्माताओं के सामने एक सवाल था: स्वतंत्र भारत कैसा होगा? क्या वह केवल औपनिवे...

India's Suspension of the Indus Waters Treaty: Strategic, Ethical and Diplomatic Implications

भारत का सिंधु जल संधि स्थगन निर्णय: रणनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक विश्लेषण | Gynamic GK

भारत का सिंधु जल संधि स्थगन निर्णय: रणनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक विश्लेषण

प्रकाशित तिथि: 24 अप्रैल 2025 | लेखक: Gynamic GK Team

भूमिका

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। इसके जवाब में भारत सरकार ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) को अस्थायी रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया। यह केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रणनीतिक नीति, नैतिक विवेक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की बदली प्राथमिकताओं का प्रतीक है।

"पानी जीवन का आधार है, परंतु कूटनीति में यह शांति और युद्ध दोनों का हथियार बन सकता है।"

1. सिंधु जल संधि: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • संधि पर हस्ताक्षर: 19 सितंबर 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा विश्व बैंक की मध्यस्थता में।
  • पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज): भारत को पूर्ण अधिकार (20% जल प्रवाह)।
  • पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): पाकिस्तान को प्राथमिक अधिकार (80%)। भारत को सीमित उपयोग की अनुमति।
  • स्थायी सिंधु आयोग, तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय जैसे विवाद समाधान तंत्र।

2. भारत की प्रतिक्रिया: रणनीतिक संकेत

2.1 आतंकवाद और सुरक्षा

पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद (पुलवामा, उरी, पहलगाम) ने भारत को हाइब्रिड युद्ध नीति अपनाने पर मजबूर किया।

"पानी और खून साथ नहीं बह सकते।" – पीएम नरेंद्र मोदी

2.2 आर्थिक और कूटनीतिक दबाव

  • पाकिस्तान की कृषि और खाद्य सुरक्षा पर निर्भरता: 90% कृषि सिंधु जल पर निर्भर।
  • संदेश: जल अब केवल संसाधन नहीं, बल्कि कूटनीतिक हथियार है।

3. तकनीकी, पर्यावरणीय और प्रशासनिक चुनौती

  • बांध, जलाशय, नहरें बनाना आवश्यक – निवेश और समय की आवश्यकता।
  • भारत के पंजाब/कश्मीर में बाढ़ की आशंका – उदाहरण: शाहपुर कंडी प्रोजेक्ट।
  • जलवायु परिवर्तन और अनिश्चितता – जल प्रवाह में बदलाव।

4. अंतरराष्ट्रीय कानून और नैतिक जटिलताएँ

4.1 वैधता पर सवाल

संधि में एकतरफा स्थगन का प्रावधान नहीं, लेकिन भारत अनुच्छेद XII (3) का हवाला देकर "समीक्षा योग्य" बताता है।

4.2 नैतिक द्वंद्व

  • पाकिस्तान की जनता पर प्रभाव – खाद्य असुरक्षा, अस्थिरता।
  • भारत का दावा – "यह आतंक के विरुद्ध कदम है, न कि जनता के विरुद्ध।"

नैतिक प्रश्न: क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मानवीय मूल्यों से समझौता उचित है?

5. वैश्विक छवि और कूटनीतिक रणनीति

  • भारत की छवि: जिम्मेदार शक्ति। अस्थायी स्थगन द्वारा छवि संतुलन।
  • संभावित हस्तक्षेप: अमेरिका, EU, चीन आदि।
  • दक्षिण एशिया में जल संबंधों पर प्रभाव – भारत-चीन, भारत-बांग्लादेश।

6. नीति निर्माण और प्रशासनिक दृष्टिकोण

  • नीति बनाम नीतिशास्त्र – राष्ट्रीय हित बनाम अंतरराष्ट्रीय दायित्व
  • उदाहरण: भारत ने बागलिहार विवाद में विश्व बैंक के फैसले को माना।
  • प्रशासनिक तैयारी – जल परियोजनाओं का तेज़ क्रियान्वयन आवश्यक।

7. पर्यावरणीय और आर्थिक अवसर

  • जलविद्युत क्षमता – भारत की 50,000 MW क्षमता में से केवल 15% उपयोग।
  • भाखड़ा और रंजीत सागर बांधों जैसे उदाहरणों से प्रेरणा।
  • संधि स्थगन से जल और ऊर्जा दोनों क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की संभावना।

8. भविष्य की दिशा: रणनीतियाँ

  • संधि की औपचारिक समीक्षा – विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से।
  • आंतरिक जल निवेश – किशनगंगा और शाहपुर कंडी जैसे प्रोजेक्ट्स।
  • राष्ट्रीय जल नीति का क्रियान्वयन – जल शक्ति मंत्रालय के अधीन।

UPSC हेतु प्रासंगिकता: यह लेख GS Paper 2 (International Relations), GS Paper 3 (Environment & Infrastructure), और GS Paper 4 (Ethics) के लिए अत्यंत उपयोगी केस स्टडी प्रस्तुत करता है।

लेखक: Gynamic GK – Arvind Singh PK Rewa | स्रोत: समसामयिक विश्लेषण | लिंक: www.gynamicgk.in

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