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Directive Principles of State Policy: Guiding India's Vision for a Welfare State

 राज्य के नीति निदेशक तत्व: कल्याणकारी राज्य का मार्गदर्शक दर्शन प्रस्तावना: संविधान की आत्मा का जीवंत हिस्सा भारतीय संविधान का भाग 4, जो अनुच्छेद 36 से 51 तक फैला है, 'राज्य के नीति निदेशक तत्व' (Directive Principles of State Policy – DPSPs) का खजाना है। ये तत्व भारत को एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की ओर ले जाने का सपना दिखाते हैं, जहाँ न केवल राजनीतिक आज़ादी हो, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी हर नागरिक तक पहुँचे। ये तत्व भले ही अदालतों में लागू करवाने योग्य न हों, लेकिन ये संविधान की उस चेतना को दर्शाते हैं जो भारत को समता, न्याय और बंधुत्व का देश बनाने की प्रेरणा देती है।  यह संपादकीय लेख भाग 4 के महत्व, इसके ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भ, इसकी उपलब्धियों और चुनौतियों को सरल, रुचिकर और गहन तरीके से प्रस्तुत करता है। आइए, इस यात्रा में शामिल हों और समझें कि कैसे ये तत्व आज भी भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: स्वतंत्र भारत का नीतिगत सपना जब भारत ने 1947 में आज़ादी हासिल की, तब संविधान निर्माताओं के सामने एक सवाल था: स्वतंत्र भारत कैसा होगा? क्या वह केवल औपनिवे...

Cold War and Non-Aligned Movement: A Detailed Study

12th Political Science : Essential for Background.
Cold War and Non-Aligned Movement: A Detailed Study.

✍️ By ARVIND SINGH PK REWA

शीत युद्ध का अर्थ और परिभाषा

शीत युद्ध (Cold War) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच उत्पन्न वैचारिक, कूटनीतिक और सामरिक संघर्ष को कहते हैं। यह प्रत्यक्ष युद्ध नहीं था, बल्कि मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रचार युद्ध था। दोनों महाशक्तियों के बीच सैन्य प्रतिस्पर्धा, गुप्तचरी, हथियारों की होड़ और प्रचार अभियान इसके मुख्य पहलू थे।

प्रथम प्रयोग: "शीत युद्ध" शब्द का सर्वप्रथम उपयोग अमेरिकी राजनीतिज्ञ बर्नार्ड बैरूच ने 16 अप्रैल 1947 को किया था, लेकिन इसे लोकप्रियता पत्रकार वॉल्टर लिपमैन की पुस्तक The Cold War (1947) से मिली।

📚 शीत युद्ध की परिभाषाएँ

  • डॉ. एम.एस. राजन: "शीत युद्ध सत्ता संघर्ष की राजनीति का मिश्रित परिणाम है। यह दो विरोधी विचारधाराओं और जीवन पद्धतियों के संघर्ष का परिणाम है।"
  • डी.एफ. फ्लेमिंग: "शीत युद्ध वह युद्ध है, जो युद्धभूमि पर नहीं, बल्कि लोगों के मन-मस्तिष्क में लड़ा जाता है।"
  • गिब्स: "यह एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध है, जिसमें शत्रु को अलग-थलग करने और मित्र देशों को अपनी ओर मिलाने के लिए चालाकी का उपयोग किया जाता है।"

शीत युद्ध के कारण

1. महाशक्तियों के बीच अविश्वास

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अविश्वास बढ़ गया।
  • द्वितीय मोर्चे (Second Front) पर असहमति: युद्ध के दौरान स्टालिन ने ब्रिटेन और अमेरिका से पश्चिमी यूरोप में दूसरा मोर्चा खोलने की अपील की, ताकि जर्मनी को दो तरफ से घेरा जा सके, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन ने देरी की, जिससे सोवियत संघ में अविश्वास उत्पन्न हुआ।
  • परमाणु हथियारों पर एकाधिकार: अमेरिका द्वारा गुप्त रूप से परमाणु बम विकसित करने से सोवियत संघ नाराज हो गया और उसने भी परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया।

2. विचारधाराओं का टकराव

  • अमेरिका: पूंजीवादी विचारधारा का समर्थक था, जो स्वतंत्र बाजार और उदार लोकतंत्र पर बल देता था।
  • सोवियत संघ: साम्यवादी विचारधारा का पक्षधर था, जो राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था और एकदलीय शासन प्रणाली को बढ़ावा देता था।
  • दोनों विचारधाराओं की भिन्नता शीत युद्ध का प्रमुख कारण बनी।

3. सैन्य गुटों का गठन

  • अमेरिका ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए NATO (1949), SEATO (1954) और CENTO (1955) जैसे सैन्य संगठन बनाए।
  • जवाब में सोवियत संघ ने वारसा संधि (1955) बनाई।
  • इन गुटों के कारण विश्व दो ध्रुवों में बंट गया।

4. प्रचार युद्ध

  • दोनों महाशक्तियों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया।
  • सोवियत संघ ने पूंजीवादी देशों को साम्राज्यवादी और शोषक बताया, जबकि अमेरिका ने साम्यवाद को तानाशाही और मानवाधिकार विरोधी बताया।

5. मार्शल योजना और ट्रूमैन डॉक्ट्रिन

  • अमेरिका ने यूरोप में सोवियत प्रभाव को रोकने के लिए मार्शल योजना (1947) के तहत आर्थिक सहायता दी।
  • ट्रूमैन डॉक्ट्रिन (1947) ने साम्यवाद को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए।

6. याल्टा समझौते का उल्लंघन

  • याल्टा सम्मेलन (1945) में पश्चिमी यूरोप पर अमेरिकी और पूर्वी यूरोप पर सोवियत प्रभाव तय हुआ था।
  • सोवियत संघ ने पोलैंड में साम्यवादी शासन स्थापित कर समझौते का उल्लंघन किया, जिससे अमेरिका नाराज हो गया।

7. सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग

  • अमेरिका और सोवियत संघ ने एक-दूसरे के प्रस्तावों को बार-बार वीटो किया, जिससे सुरक्षा परिषद ठप हो गई।

8. चर्चिल का फुल्टन भाषण (1946)

  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा, "हम एक फासीवादी (साम्यवादी) शक्ति का समर्थन नहीं कर सकते।"
  • इस भाषण ने शीत युद्ध को और तीव्र कर दिया।

🌎 गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)

अर्थ और परिभाषा

गुटनिरपेक्षता का अर्थ है, महाशक्तियों के किसी सैन्य गुट में शामिल न होना। यह तटस्थता (Neutrality) नहीं, बल्कि एक सक्रिय कूटनीतिक नीति थी, जिसका उद्देश्य शांति स्थापित करना और गुटीय तनाव से दूर रहना था।

📚 NAM के संस्थापक

  1. पं. जवाहरलाल नेहरू (भारत)
  2. गमाल अब्देल नासर (मिस्र)
  3. जोसिप ब्रोज टीटो (यूगोस्लाविया)
  4. सुकर्णो (इंडोनेशिया)
  5. क्वामे न्क्रूमा (घाना)

NAM के विकास के कारण

  1. शीत युद्ध का भय: नवस्वतंत्र राष्ट्र शांति चाहते थे और गुटों में शामिल होकर संघर्ष नहीं चाहते थे।
  2. आर्थिक सहायता की आवश्यकता: गुटनिरपेक्षता से दोनों महाशक्तियों से आर्थिक सहायता प्राप्ति की संभावना बनी रहती थी।
  3. स्वतंत्र विदेश नीति: उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाना चाहते थे।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध: NAM के सदस्य देश उपनिवेशवाद के विरोधी थे।
  5. शांति की इच्छा: युद्ध और शोषण से त्रस्त देश शांति चाहते थे, जिसके लिए NAM ने मंच प्रदान किया।

NAM के विशेषताएँ

  1. गुटीय सैन्य संधियों में शामिल न होना।
  2. स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना।
  3. विश्व शांति की रक्षा करना।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध।
  5. नस्लवाद का विरोध करना।
  6. हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण का समर्थन।

🇮🇳 भारत की भूमिका

  • 1947 एशियाई सम्मेलन में नेहरू ने कहा, "हम किसी देश के उपग्रह नहीं बनेंगे।"
  • 1955 बांडुंग सम्मेलन में भारत ने NAM के गठन में मुख्य भूमिका निभाई।
  • भारत ने UN सुधार, आतंकवाद विरोध और दक्षिण-दक्षिण सहयोग में NAM को सक्रिय किया।

💡 निष्कर्ष

शीत युद्ध ने वैश्विक राजनीति को दो ध्रुवों में विभाजित किया, जबकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने नवस्वतंत्र देशों को शांति और स्वतंत्रता का मार्ग दिखाया। वर्तमान में भी NAM विकासशील देशों के लिए एक प्रभावशाली मंच है, जो विश्व शांति, आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।

यह लेख परीक्षा के लिए उपयोगी है, जिसमें शीत युद्ध, उसके कारण, प्रभाव और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की व्यापक जानकारी दी गई है।

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