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11th NCERT पोलिटिकल साइंस नोट्स
चैप्टर-5: विधायिका
भाग-1: संसद की आवश्यकता और भूमिका
1. संसद की आवश्यकता और लोकतंत्र में भूमिका
- लोकतंत्र का आधार: संसद केवल कानून निर्माण तक सीमित नहीं है; यह जनता की आवाज, आकांक्षाओं और मुद्दों को प्रतिबिंबित करने का मंच है।
- प्रतिनिधित्व: संसद के माध्यम से नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के जरिए शासन में भाग लेते हैं।
- जवाबदेही: कार्यपालिका (कैबिनेट) को संसद के प्रति जवाबदेह होना पड़ता है। यह प्रश्नकाल, शून्यकाल और अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपकरणों से सुनिश्चित होता है।
- लोकतांत्रिक महत्व: संसद विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और क्षेत्रीय समूहों के हितों को संतुलित करती है और राष्ट्रीय नीतियों को आकार देती है।
2. दो सदनों वाली संसद की आवश्यकता
- द्विसदनीय व्यवस्था का उद्देश्य:
- विविधता का प्रतिनिधित्व: भारत जैसे विशाल और विविध देश में सभी क्षेत्रों और समुदायों की आवाज सुनिश्चित करना।
- गहन विचार-विमर्श: दो सदन विधेयकों पर गहन चर्चा और संशोधन की सुविधा प्रदान करते हैं।
- लोकसभा:
- सीधे जनता द्वारा चुनी जाती है।
- कार्यकाल: 5 वर्ष (विशेष परिस्थितियों में भंग हो सकती है)।
- मुख्य कार्य: सरकार गठन, धन विधेयक पारित करना।
- राज्यसभा:
- अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती है (राज्य विधानसभाओं द्वारा)।
- स्थायी सदन: एक-तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं।
- विशेषज्ञता: राष्ट्रपति द्वारा 12 सदस्यों का नामांकन (कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा आदि क्षेत्रों से)।
- कार्य: राज्यों का प्रतिनिधित्व, विधायी स्थिरता।
3. भारतीय और अमेरिकी मॉडल की तुलना
- भारतीय मॉडल:
- राज्यसभा में प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर (बड़े राज्यों को अधिक सीटें)।
- उपयुक्त भारत जैसे विविध और असमान जनसंख्या वाले देश के लिए।
- अमेरिकी मॉडल:
- सीनेट में सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व।
- भारत में यह मॉडल उपयुक्त नहीं, क्योंकि छोटे राज्यों को अनुपात से अधिक शक्ति मिलेगी।
- राज्यसभा का स्थायी स्वरूप: लोकसभा भंग होने पर भी संसद के कार्यों को जारी रखता है।
4. संसद के प्रभाव और कार्य
- वाद-विवाद और विरोध: संसद में होने वाली बहसें लोकतंत्र को जीवंत बनाती हैं।
- उदाहरण:
- उर्वरक और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि पर संसद में विरोध के कारण सरकार को नीति वापस लेनी पड़ी।
- असम जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर विशेष चर्चा ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया।
- दलितों के खिलाफ अत्याचार जैसे सामाजिक मुद्दों पर संसद ने दबाव बनाया।
- उदाहरण:
- नीति निर्माण: संसद सार्वजनिक मुद्दों पर नीतियों को प्रभावित करती है।
5. निष्कर्ष
- संसद लोकतंत्र का हृदय है, जो कानून निर्माण, जवाबदेही और प्रतिनिधित्व के माध्यम से शासन को मजबूत करती है।
- द्विसदनीय प्रणाली भारत की विविधता और जटिलता को संबोधित करने में महत्वपूर्ण है।
भाग-2: संसद के कार्य, शक्तियां और प्रक्रियाएं
1. संसद के प्रमुख कार्य
- विधायी कार्य:
- कानून निर्माण संसद का प्राथमिक कार्य।
- विधेयक का प्रारूप नौकरशाही और मंत्रियों द्वारा तैयार, कैबिनेट की मंजूरी अनिवार्य।
- कार्यपालिका पर नियंत्रण:
- प्रश्नकाल, शून्यकाल और अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपकरणों से जवाबदेही सुनिश्चित।
- उदाहरण: मंत्रियों को संसद में नीतियों पर सवालों का जवाब देना पड़ता है।
- वित्तीय नियंत्रण:
- बजट और वित्तीय विवरण संसद की मंजूरी के बिना लागू नहीं हो सकते।
- धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किए जाते हैं।
- प्रतिनिधित्व:
- विभिन्न सामाजिक, क्षेत्रीय और आर्थिक समूहों की आवाज को संसद में स्थान।
- संवैधानिक कार्य:
- संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों में विशेष बहुमत आवश्यक।
- चुनावी और न्यायिक कार्य:
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का चुनाव।
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया।
2. लोकसभा और राज्यसभा की शक्तियों में अंतर
- लोकसभा की विशेष शक्तियां:
- धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किए जाते हैं।
- कार्यपालिका केवल लोकसभा के प्रति जवाबदेह।
- अविश्वास प्रस्ताव द्वारा सरकार को हटाने की शक्ति।
- राज्यसभा की विशेष शक्तियां:
- राज्य सूची के विषय को केंद्र सूची में स्थानांतरित करने के लिए विशेष बहुमत।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान कुछ विशेष अधिकार।
- समान शक्तियां:
- सामान्य विधेयक दोनों सदनों में पेश किए जा सकते हैं।
- असहमति की स्थिति में संयुक्त सत्र द्वारा निर्णय।
3. विधि निर्माण की प्रक्रिया
- चरण:
- प्रारूप तैयार करना: नौकरशाही और मंत्रालय द्वारा।
- कैबिनेट की मंजूरी: विधेयक को संसद में पेश करने से पहले।
- संसद में चर्चा:
- प्रथम वाचन: विधेयक का परिचय।
- द्वितीय वाचन: विस्तृत चर्चा और समिति में समीक्षा।
- तृतीय वाचन: अंतिम मतदान।
- दोनों सदनों की मंजूरी: दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति।
- संयुक्त सत्र: असहमति की स्थिति में लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र।
- धन विधेयक:
- केवल लोकसभा में पेश।
- राज्यसभा केवल सुझाव दे सकती है, अस्वीकार नहीं कर सकती।
4. कार्यपालिका पर नियंत्रण के उपकरण
- प्रश्नकाल: सांसद मंत्रियों से नीतियों और कार्यों पर सवाल पूछते हैं।
- शून्यकाल: अनिर्धारित मुद्दों पर त्वरित चर्चा।
- अविश्वास प्रस्ताव: सरकार को हटाने का उपकरण।
- संसदीय समितियां: विधेयकों और नीतियों की गहन समीक्षा।
- प्रमुख समितियां: लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, संयुक्त संसदीय समिति।
5. संसद की आत्म-नियामक व्यवस्था
- पीठासीन अधिकारी: लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति संसदीय कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं।
- दल-बदल विरोधी कानून (1985, संशोधित 2003):
- दल-बदल को रोकने के लिए लागू।
- सीमाएं: यह पार्टी नेतृत्व को अत्यधिक शक्ति देता है और आंतरिक लोकतंत्र को कमजोर करता है।
- संसदीय विशेषाधिकार: सांसदों को स्वतंत्रता और विशेष अधिकार, लेकिन इसका दुरुपयोग भी देखा गया है।
6. विश्लेषण और चुनौतियां
- ताकत:
- संसद लोकतंत्र का आधार, जो जवाबदेही और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है।
- संसदीय समितियां और नियंत्रण उपकरण कार्यपालिका पर प्रभावी अंकुश।
- कमियां:
- सत्रों की संख्या और बहस की गुणवत्ता में कमी।
- राजनीतिक टकराव और व्यवधान संसद की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं।
- दल-बदल कानून की प्रभावशीलता सीमित; यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित करता है।
- सुधार की आवश्यकता:
- सत्रों की अवधि और गुणवत्ता बढ़ाना।
- संसदीय समितियों की भूमिका को और सशक्त करना।
- दल-बदल कानून में संशोधन ताकि आंतरिक लोकतंत्र मजबूत हो।
7. निष्कर्ष
- संसद भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ है, जो विधायी, वित्तीय और कार्यकारी नियंत्रण के माध्यम से शासन को मजबूत करती है।
- इसकी प्रभावशीलता सांसदों की सक्रियता, समय प्रबंधन और राजनीतिक सहमति पर निर्भर करती है।
- सुधारों के माध्यम से संसद की कार्यक्षमता और पारदर्शिता को बढ़ाया जा सकता है।
अभ्यास प्रश्नोत्तर
1️⃣ बहुत छोटे उत्तर वाले प्रश्न (1 अंक)
| प्रश्न | उत्तर (संक्षेप में) |
|---|---|
| 1. भारत की संसद कितने सदनों वाली है? | दो – लोकसभा और राज्यसभा। |
| 2. लोकसभा के सदस्यों का चुनाव कैसे होता है? | प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा, वयस्क मताधिकार के आधार पर। |
| 3. राज्यसभा को स्थायी सदन क्यों कहा जाता है? | यह भंग नहीं होती; हर 2 वर्ष में 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। |
| 4. लोकसभा का कार्यकाल कितना है? | 5 वर्ष (भंग भी हो सकती है)। |
| 5. राष्ट्रपति कितने सदस्यों को राज्यसभा में नामित करता है? | 12 सदस्य। |
| 6. लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या कितनी है? | 543 सदस्य। |
| 7. राज्यसभा के सदस्य का कार्यकाल कितना होता है? | 6 वर्ष। |
| 8. राज्यसभा का अध्यक्ष कौन होता है? | उपराष्ट्रपति। |
2️⃣ छोटे उत्तर वाले प्रश्न (2-3अंक)
3️⃣ लम्बे उत्तर वाले प्रश्न (4 अंक)
| प्रश्न | उत्तर (बिंदुवार) |
|---|---|
| 1. संसद के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। | (1) कानून निर्माण; (2) कार्यपालिका पर निगरानी व जवाबदेही; (3) वित्तीय कार्य (बजट, कर, व्यय स्वीकृति); (4) प्रतिनिधित्व – जनता व राज्यों का; (5) सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा; (6) संवैधानिक संशोधन। |
| 2. भारत में द्विसदनीय संसद की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। | (1) विविधता वाला देश – सभी की आवाज़; (2) दो सदनों से गहन विचार-विमर्श; (3) राज्यसभा स्थायी सदन – स्थिरता; (4) लोकसभा-राज्यसभा से शक्ति संतुलन; (5) लोकतंत्र को मजबूती। |
| 3. राज्यसभा के विशेष अधिकार व भूमिका लिखिए। | (1) राज्यों का प्रतिनिधित्व; (2) स्थायी सदन; (3) विशेषज्ञों का योगदान (12 नामांकित); (4) कुछ विशेष मामलों में शक्तियाँ – अखिल भारतीय सेवाओं का गठन; (5) लोकसभा भंग होने पर विधायी कार्य जारी। |
| 4. संसद लोकतंत्र को कैसे प्रभावित करती है? | (1) बहस/वाद-विवाद से पारदर्शिता; (2) नीतियों पर दबाव डालकर बदलाव; (3) कार्यपालिका की जवाबदेही; (4) राष्ट्रीय मुद्दों पर मंच; (5) सार्वजनिक भागीदारी का प्रतीक। |
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