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12th Political Science Complete Notes

  📘 Part A: Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति) The Cold War Era (शीत युद्ध का दौर) The End of Bipolarity (द्विध्रुवीयता का अंत) US Hegemony in World Politics ( विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व ) Alternative Centres of Power ( शक्ति के वैकल्पिक केंद्र ) Contemporary South Asia ( समकालीन दक्षिण एशिया ) International Organizations ( अंतर्राष्ट्रीय संगठन ) Security in the Contemporary World ( समकालीन विश्व में सुरक्षा ) Environment and Natural Resources ( पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन ) Globalisation ( वैश्वीकरण ) 📘 Part B: Politics in India Since Independence (स्वतंत्रता के बाद भारत में राजनीति) Challenges of Nation-Building (राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ) Era of One-Party Dominance (एक-दलीय प्रभुत्व का युग) Politics of Planned Development (नियोजित विकास की राजनीति) India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) Challenges to and Restoration of the Congress System ( कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना ) The Crisis of Democratic...

12th राजनीति विज्ञान अध्याय1.1 : शीत युद्ध का दौर(The Cold War Era)

 शीत युद्ध का क्या अर्थ है?


 द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात दो महाशक्तियों का उदय हुआ। अमेरिका और सोवियत संघ । दोनों के  मध्य अविश्वास के कारण एक दूसरे के सापेक्ष अपने आपको शक्तिशाली  बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो गई। यह प्रतिस्पर्धा ऐसी स्थिति में प्रवेश कर गई की ऐसा प्रतीत होने लगा कि दोनों ही महाशक्तियों के मध्य कभी भी युद्ध प्रारंभ हो सकता है लेकिन यह वास्तविक युद्ध नहीं था वल्कि एक विचारधारा का युद्ध,मनोवैज्ञानिक युद्ध,प्रयोगशाला में लड़ा जाने वाला युद्ध तथा संचार माध्यमों से एक दूसरे के विरुद्ध विरोधी विचार व्यक्त करने का कूटनीतिक युद्ध  माना जा सकता है।

शीतयुद्ध शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी राजनीतिज्ञ बर्नार्ड बारूश ने 16 अप्रैल 1947 को किया था लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने का कार्य वाल्टर लिटमैन ने अपनी पुस्तक 'The Cold war' के माध्यम से किया।

 शीत युद्ध को परिभाषित कीजिए

 डॉक्टर एम एस राजन के अनुसार- 
'शीत युद्ध शक्ति संघर्ष की राजनीति का मिलाजुला परिणाम है। दो विरोधी विचारधाराओं और दो परस्पर विरोधी जीवन पद्धतियों में संघर्ष का परिणाम है।'

 डी. एफ. फ्लेमिंग के अनुसार - 
'शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है जो युद्धक्षेत्र में नहीं बल्कि मनुष्य के मस्तिष्क में लड़ा जाता है।'
गिब्ज के अनुसार -
'यह एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध है जिसमें शत्रु को अकेला करने और मित्रों की खोज करने की चतुराई का प्रयोग किया जाता है।'

शीत युद्ध के क्या कारण थे?

द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होते ही अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य तनाव व शीतयुद्ध का दौर प्रारम्भ हो गया।आइये जानते हैं इसके क्या कारण थे।

 1-दोनों महाशक्तियों में अविश्वास
 द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात दोनों महाशक्तियों (अमेरिका और सोवियत संघ ) के मध्य अविश्वास पैदा हो गया। इस अविश्वास के पीछे कई कारण थे जिसमें प्रमुख कारण निम्न थे-

¡- द्वितीय मोर्चे के प्रश्न पर मतभेद
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जर्मनी सोवियत संघ पर आक्रमण कर रहा था तो युद्ध की भयंकरता को देखते हुए सोवियत संघ के राष्ट्रपति स्टालिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट तथा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल से यह आग्रह किए कि जर्मनी के पश्चिमी भाग पर अमेरिका और ब्रिटेन को दूसरा मोर्चा खोल देना चाहिए जिससे जर्मनी की सैनिक शक्ति दो भागों में विभाजित हो जाए और उसे पराजित करना आसान हो जाए लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन ने उनके इस आग्रह पर कोई निर्णय नहीं लिए जिससे पश्चिमी देशों पर सोवियत संघ को अविश्वास हो गया। 

 ¡¡ -परमाणु अस्त्रों पर एकाधिकार
चूंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका गुप्त रूप से परमाणु अस्त्रों को विकसित कर लिया था अतः सोवियत संघ भी परमाणु अस्त्र विकसित करने के लिए प्रयास करने लगा जिससे दोनों महा शक्तियों में प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो गई जो शीत युद्ध का प्रमुख कारण बना।

2-विचारधारा का टकराव 

सोवियत संघ साम्यवादी विचारधारा का समर्थक था जबकि अमेरिका ब्रिटेन पूंजीवादी। अतः इनके मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न होना स्वाभाविक था इसका एक कारण यह भी था कि सोवियत संघ साम्यवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार करके अन्य देशों में भी साम्यवादी शासन की स्थापना हेतु प्रयासरत था जबकि पूंजीवादी देश इस प्रसार को रोकने के लिए प्रयासरत थे। अतः यह टकराव शीतयुद्ध का कारण बना।

3-पूरे विश्व में सैनिक गुटबंदी का दौर

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात पूरे विश्व में सैनिक गुटबंदियों का दौर प्रारंभ हो गया। अमेरिका अपने प्रभाव एवं शक्ति को बढ़ाने के लिए नाटो सीटो सेंटो जैसे सैनिक गुटों का निर्माण किया। जबकि सोवियत संघ इनके विरुद्ध अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए वारसा पैक्ट नामक गठबंधन को तैयार किया। एक दूसरे के विरुद्ध अपनी शक्ति को बढ़ाने की यह प्रतिस्पर्धा अंततः शीत युद्ध का कारण बनी।

4- एक दूसरे के विरुद्ध प्रचार-प्रसार

 द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात दोनों शक्तिगुट एक दूसरे के विरुद्ध प्रचार प्रसार करने लगे सोवियत संघ का यह कहना था कि पूंजीवादी पश्चिमी देश साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी हैं। ये कमजोर एवं गरीब देशों का शोषण करने में विश्वास रखते हैं अतः इनके खिलाफ विद्रोह करके अपने देश में साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना करें जबकि अमेरिका का कहना था कि सोवियत संघ अपने साम्यवादी विचारों का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में करके बलपूर्वक साम्यवादी शासन की स्थापना करना चाहता है। अतः इनसे (रेड फोबिया) बचने हेतु विश्व के अन्य देशों को भी अमेरिकी गुट में सम्मिलित होना चाहिए ।

5-मार्शल एवं ट्रूमैन योजना

ट्रूमैन योजना का संबंध ऐसे कूटनीतिक विचारों से है जिसके माध्यम से सोवियत संघ के प्रसार को रोका जाए। जबकि मार्शल योजना का संबंध यूरोप का पुनर्निर्माण में आर्थिक सहायता करके उन्हें अमेरिकी गुट में शामिल करना, जिससे कि साम्यवादी सोवियत संघ का विस्तार ना हो सके। जब सोवियत संघ को अमेरिका की इन नीतियों का पता चला वह भी इसी तरह का प्रयास करने लगा जिससे शीत युद्ध को बढ़ावा मिला।


6-सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का उल्लंघन 

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात 1945 में याल्टा में एक समझौता हुआ था जिसके तहत पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ के प्रभाव को तथा पश्चिमी यूरोप में अमेरिका के प्रभाव को स्वीकार किया गया था। लेकिन यह भी कहा गया कि इन देशों में लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जाएगा। परंतु सोवियत संघ ने पोलैंड में साम्यवादी सरकार की स्थापना कर दी जिससे अमेरिका नाराज हो गया।

 7-शक्ति शून्यता का सिद्धांत

 इस सिद्धांत के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ब्रिटेन की शक्ति कमजोर होने के कारण जैसे-जैसे अपने उपनिवेशों से अपनी शक्ति को समेट रहा था वैसे वैसे इस शक्ति शून्यता को भरने के लिए अमेरिका को आगे बढ़ना चाहिए। जब सोवियत संघ को अमेरिका की इस नीति का पता चला तो वह भी अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए प्रयास करने लगा जो शीत युद्ध का कारण बना।

8-सुरक्षा परिषद में बार-बार वीटो का प्रयोग 

सुरक्षा परिषद में जब भी कोई प्रस्ताव अमेरिकी गुट द्वारा लाया जाता था तो  सोवियत संघ द्वारा इसे वीटो कर दिया जाता था।इसी प्रकार जब सोवियत संघ द्वारा कोई प्रस्ताव आता था तो उसे अमेरिका वीटो कर देता था।अतः दोनो गुटों की इसी रस्साकशी ने शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

 तात्कालिक कारण

9-चर्चिल का फुल्टन भाषण

 5 मार्च 1946 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने अमेरिका के फुल्टन शहर में भाषण के दौरान यह कहा कि 'हम एक फासीवादी शक्ति के स्थान पर दूसरी फासीवादी शक्ति(साम्यवादी सोवियत संघ) का समर्थन नहीं कर सकते, इसलिए सोवियत संघ के विरुद्ध एंग्लो-अमेरिकन गठबंधन बनाया जाए।' उपरोक्त कथन शीत युद्ध को प्रारंभ कर दिया।

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 गुट निरपेक्षता का अर्थ बतलाते हुए, गुट निरपेक्ष आदोलन के विकास में सहायक तत्वों पर प्रकाश डालिए।

  द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात पूरे विश्व में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के विरोध में जन्मे आंदोलन से कई देश नवस्वतंत्र हुए। इन देशो के समक्ष अपने पुनर्निर्माण एवं विकास की चुनौती थी। अतः ये नव स्वतंत्र देश शांति पूर्वक अपना विकास करना चाहते थे। चूंकि उस समय पूरा विश्व गुटबंदी एवं शीत युद्ध के दौर से गुजर रहा था अतः अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए इन देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति अर्थात न तो अमेरिकी गुट में और न ही सोवियत संघ के गुट में सम्मिलित होने की नीति अपनाई। धीरे-धीरे तृतीय विश्व के देशों में इस नीति का इतना प्रचार-प्रसार हुआ कि इस नीति को अपनाने वाले देशों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई। इस प्रकार गुटनिरपेक्षता की नीति ने एक आंदोलन का रूप ले लिया। इसीलिए इसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन(NAM) कहा जाता है। इस आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में भारतीय प्रधानमंत्री नेहरुजी, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो एवं इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो का विशेष योगदान है।
        गुटनिरपेक्षता का अर्थ महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होना है।इसका अर्थ पृथकतावाद नही है।पृथकतावाद का अर्थ है अपने आपको अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अलग रखना है जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति पूरे विश्व मे शांति एवं स्थिरता बनाये रखने के लिए दोनों ही गुटों के बीच मध्यस्थता की सक्रिय भूमिका अदा करना है।गुटनिरपेक्षता तटस्थता भी नही है। क्योंकि तटस्थता किसी भी पक्ष से युद्ध मे शामिल न होने की नीति है। ये देश न तो युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं और न ही सही-गलत पर अपना कोई पक्ष रखते हैं अर्थात ये पूरी तरह से तटस्थ रहते हैं।जबकि गुटनिरपेक्ष देश सही-गलत पर अपने तर्क भी रखते हैं और युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रयास भी करते हैं।इसके अतिरिक्त तटस्थता केवल युद्ध काल की नीति है जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति युद्धकाल एवं शांतिकाल दोनों में जीवित रहती हैं।

 गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विकास में प्रेरक तत्व-

 गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विकास में निम्नलिखित प्रेरक तत्वों का विशेष योगदान है-

 1-शीत युद्ध का भय 

सभी नवस्वतंत्र देश वर्षों तक गुलामी और शोषण का शिकार रहे। अतः स्वतंत्रता के पश्चात वे शांतिपूर्ण विकास करना चाहते थे ।यदि वे गुटबंदी का समर्थन करते तो ऐसी स्थिति में शीत युद्ध का प्रभाव इन देशों तक पहुंच सकता था। अतः इससे बचने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई।

 2-आर्थिक एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता

 नवस्वतंत्र देशों को अपने पुनर्निर्माण एवं विकास के लिए आर्थिक एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता थी। यदि वे किसी एक गुट में सम्मिलित हो जाते तो दूसरे गुट द्वारा प्राप्त होने वाली इसी प्रकार की सहायता से वंचित हो जाते। अतः दोनों ही गुटों से सहायता प्राप्त करने के विकल्पों को खुला रखने के लिए उन्होंने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई ।

3-स्वतंत्र विदेश नीति की आकांक्षा 

नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र वर्षो की गुलामी से स्वतंत्र होने के पश्चात पुनः इसी प्रकार की किसी और गुलामी को स्वीकार नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने यह निर्णय लिया कि किसी भी गुट में शामिल ना हो कर स्वतंत्रता पूर्वक अपनी विदेश नीति का निर्माण करें।

 4-शक्ति राजनीति से पृथक रखकर स्वतंत्र अस्तित्व की आकांक्षा

 नवस्वतंत्र देश इतने शक्तिशाली नहीं थे कि वे शक्ति राजनीति से पृथक रहते हुए भी विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। अतः गुटनिरपेक्ष आंदोलन उनके लिए एक ऐसा मंच था जिसके माध्यम से वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी सक्रिय भागीदारी को प्रस्तुत कर सकते थे। 

5-साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के प्रति आक्रोश 

क्योंकि सभी गुटनिरपेक्ष देश साम्राज्यवादी उपनिवेशवादी ताकतों के शोषण का शिकार रहे थे अतः स्वतंत्रता के पश्चात एकजुट होकर उन राष्ट्रों को स्वतंत्र कराने के लिए प्रयास करने लगे जो अभी भी इसी प्रकार के शोषण के शिकार थे।अतः इनके माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले देशों का गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होना स्वाभाविक था। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष देशों की संख्या बढ़ती चली गई।

6-शांति की प्रबल इच्छा

 नवस्वतंत्र देश शांति पूर्वक विकास करना चाहते थे अतः इनके लिए जरूरी था कि वे सैनिक गुटबंदी में न पढ़कर एकजुट होकर शीत युद्ध को समाप्त करने हेतु प्रयास करें।अतः इन्होंने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनायी।

गुटनिरपेक्ष देशों के विशेषताएं

 1- ये देश किसी भी सैनिक गुटबंदी में अपने आप को संलिप्त नहीं करते।

 2- ऐसे देशों की विदेश नीति स्वतंत्र होती है अर्थात इन पर गुटबंदी के शिकार देशों का कोई प्रभाव नहीं होता।

 3- ये देश विश्व शांति के समर्थक होते हैं तथा इसके लिए आवश्यक सभी जरूरी उपायों के लिए प्रयास करते हैं।

 4 - इनकी विदेश नीति साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद विरोधी होती है अर्थात जिन देशों में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के विरोध में आंदोलन चलाया जा रहा है उन आंदोलनों का ये देश समर्थन करते हैं।

 5 - यह देश नस्लवाद या प्रजातिवाद का विरोध करते हैं तथा जिन देशों में नस्लवाद विरोधी आंदोलन चल रहे हैं उनका समर्थन करते हैं जैसे दक्षिण अफ्रीका में इसी प्रकार का आंदोलन हो रहा था।

6- ये देश अपने भूभाग को सैनिक अड्डा बनाने हेतु किसी भी गुटबंदी में शामिल देश को नहीं देते हैं।

7- ये देश शस्त्र नियंत्रण एवं निःशस्त्रीकरण का समर्थन करते हैं।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की केंद्रीय भूमिका रही है। यदि भारत को इस आंदोलन का जन्मदाता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि 1947 में नई दिल्ली में आयोजित किए गए एशियाई सम्मेलन में सर्वप्रथम नेहरु जी ने यह कहा था कि-  "हम किसी देश के उपग्रह बनकर नहीं रहेंगे, हमारी विदेश नीति स्वतंत्र होगी।" नेहरू जी के इस विचार से अन्य देश भी प्रभावित हुए जिससे इस विचार को बल मिला और 1955 में आयोजित बांडुंग सम्मेलन में नेहरू जी युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर के साथ मिलकर संयुक्त वक्तव्य जारी किया। इसे ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन का आधार स्तंभ माना गया। इस प्रकार भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक देश है।

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गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वर्तमान में भारत के लिए क्या प्रासंगिकता है? स्पष्ट कीजिए

 जब गुटनिरपेक्ष देशों का 18 वां शिखर सम्मेलन अक्टूबर 2019 में अजरबेजान की राजधानी बाकू में चल रहा था तो बुद्धिजीवियों की उस पर नजर लाजमी था। बुद्धिजीवियों में इस बात पर चर्चा होती रहती है कि अब जब गुटबंदी का दौर समाप्त हो गया तो फिर आज के परिपेक्ष में इसकी क्या आवश्यकता है? आइए जानते हैं क्या है भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति और वर्तमान में इसकी क्या प्रासंगिकता है?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब पूरा विश्व शीत युद्ध और गुटबंदी के दौर से गुजर रहा था तब नव स्वतंत्र भारत के सम्मुख अपनी स्वतंत्र विदेश स्थापित करने की चुनौती थी। चूंकि भारत शांति पूर्वक अपना नवनिर्माण व विकास करना चाहता था तथा इसके लिए दोनों ही गुटों से आर्थिक व तकनीकी सहायता की आवश्यकता थी इसलिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। यदि हम किसी एक गुट में शामिल होते तो हमारी विदेश नीति स्वतंत्र नहीं रह पाती (जैसा कि नेहरू जी का कहना था कि हम किसी देश के उपग्रह नहीं बनना चाहते) तथा भारत की 
शांतिपूर्ण विकास की इच्छा शीत युद्ध की भेट चढ़ जाती और आधी दुनिया से शत्रुता मोल लेकर उनसे आर्थिक व तकनीकी सहायता प्राप्त करने से वंचित रह जाते।
लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अब ये सवाल प्रायः पूछा जाता है कि क्या भारत को गुटनिरपेक्षता की नीति का त्याग करके अमेरिका की ओर रुख करना चाहिए? शायद मोदी सरकार भी इसी बात पर विचार कर रही है इसीलिए पिछले दो शिखर सम्मेलन में माननीय प्रधानमंत्री जी भाग लेने नहीं जा रहे हैं। भारत का प्रतिनिधित्व माननीय उपराष्ट्रपति कर रहे हैं। शायद मोदी सरकार यह भी विश्लेषण कर रही है कि भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी चीन का काउंटर पोल अमेरिका है अतः चीन को साधने के लिए अमेरिका से रिश्ते मजबूत करना भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त होगा। एक समय था जब अमेरिका भारत के विरूद्ध पाकिस्तान की मदद कर रहा था उस समय भी चीन के मुद्दे पर अमेरिका भारत का साथ दिया था। डोकलाम विवाद के समय भी अमेरिका भारत के साथ था। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन गुटबंदी के विरोध में कम अमेरिका के विरोध में ज्यादा प्रखर था। अब जब अमेरिका से हमारे रिश्ते सुधार के दौर में हैं तो ऐसे में NAM का राग अलापना बेमानी होगी।
लेकिन कुछ विशेषज्ञों की राय है कि आज के बदले वैश्विक परिदृश्य में भी NAM की प्रासंगिकता बनी हुई है। इसके पक्ष में कई बिंदु हैं लेकिन तीन महत्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं

1- पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को समाप्त करने तथा टेरर फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए यह मंच महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

2- जब संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ था उस समय इसमें केवल 51 सदस्य थे, लेकिन आज सदस्यों की संख्या बढ़कर 193 हो गई। अतः इस वैश्विक संस्था का लोकतांत्रिक तरीके से पुनर्गठन होना चाहिए। सुरक्षा परिषद में भारत को स्थाई सदस्यता मिलनी चाहिए। अतः भारत की इस दावेदारी को मजबूत बनाने के लिए भारत की पहचान तीसरी दुनिया के नेतृत्वकर्ता के तौर पर बनी रहनी चाहिए।

3- भारत के लिए NAM इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विकसित देश विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से अपनी नव उपनिवेशवादी नीतियों को विकासशील देशों पर थोपते रहते हैं इसलिए विकसित देशों पर दबाव बनाने के लिए तृतीय विश्व के देशों को एकजुट रहना होगा।

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नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

 विश्व के विभिन्न देशों के बीच भारी आर्थिक विषमता हैं। एक तरफ जहां आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक संपन्न विकसित देश हैं तो वहीं दूसरी तरफ गरीबी,भुखमरी और बीमारी से ग्रसित अल्पविकसित देश। इसी आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए अल्पविकसित देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1960 के बाद एक अभियान चलाया गया,जिसमें यह मांग की गई कि अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं का पुनर्गठन इस प्रकार किया जाए कि जिससे अल्पविकसित देश अपनी गरीबी भुखमरी को दूर कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में विकास कर सकें।इस व्यवस्था में विकसित देशों को अल्पविकसित व विकासशील देशों को आर्थिक व तकनीकी सहायता प्रदान करना था। इसे ही नवीन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का नाम दिया गया।

उत्तर-दक्षिण संवाद का क्या हैं?

 अधिकतर विश्व के धनी देश उत्तर में हैं जबकि पिछड़े हुए या विकासशील देश बड़ी संख्या में दक्षिण में है। 1960 के बाद विकासशील देशों ने यह अभियान चलाया की विकसित देशों का यह दायित्व है कि वे अविकसित व विकासशील देशों को वित्तीय सहायता व नई प्रौद्योगिकी देकर सहयोग करें। 1973 में अल्जीयर्स (अल्जीरिया) में गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन हुआ जहां नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था लाने का प्रस्ताव पास किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संदर्भ में ब्रांडट आयोग(पश्चिमी जर्मनी के पूर्व चांसलर विल्ली ब्रांडट की अध्यक्षता में) गठित किया गया। जिसकी सिफारिशों पर विस्तृत चर्चा हुई। इसी चर्चा को उत्तर दक्षिण संवाद करते हैं। खेद की बात यह है कि विकसित देशों के असहयोग के कारण इस अभियान को सफलता नहीं मिली।

सामूहिक आत्मनिर्भरता व दक्षिण-दक्षिण सहयोग का क्या अर्थ है?

नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में 1960 के बाद जो उत्तर-दक्षिण संवाद चला उसे उत्तर के विकसित देशों के असहयोग के कारण सफलता नही मिल सकी ।अतः सन1980 के बाद विकासशील देशों ने यह अभियान चलाया कि वे परस्पर सहयोग से अपना विकास करें। इनके लिए 15 विकासशील देशों का गुट G-15 बना। भारत ने इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई।

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राजनीति विज्ञान

कक्षा-12वीं

टॉपिक - शीत युद्ध का दौर 



समकालीन विश्व राजनीति


शीत युद्ध की पृष्ठभूमि

  • मित्र राष्ट्र

  • धुरी राष्ट्र


शीत युद्ध का अर्थ

  • विचारधारा का युद्ध

  • मनोवैज्ञानिक युद्ध

  • प्रयोगशाला में लड़ा जाने वाला युद्ध

  • संचार माध्यम से लड़ा जाने वाला युद्ध।

  • कूटनीतिक युद्ध


शीत युद्ध के कारण


  1. दोनों महाशक्तियों में अविश्वास

1-द्वितीय मोर्चे के प्रश्न पर मतभेद।

2-परमाणु हथियारों पर एकाधिकार।

  1. विचारधारा का टकराव।

  2. सैनिक गुटबाजी।

1- NATO - (1949) North Atlantic

 treaty organization 

2- SEATO - (1954) South East Asian Treaty organization

3- CENTO & (1955) Central Treaty 

organization

4- वारसा पैक्ट (1955)


  1. एक दूसरे के विरुद्ध आरोप प्रत्यारोप।

  2. मार्शल योजना- यूरोपीय देशों की आर्थिक सहायता करके अमेरिकी गुट में शामिल करना।

  3. ट्रूमैन योजना- साम्यवादी सोवियत संघ के प्रसार को रोकना।

  4. शक्ति शून्यता का सिद्धांत।

  5. सुरक्षा परिषद में बार-बार वीटो का प्रयोग।

  6. सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का उल्लंघन - सोवियत संघ द्वारा पोलैंड में साम्यवादी सरकार की स्थापना।

  7. चर्चिल का फुल्टन भाषण (5 मार्च 1946)

  "हम एक फासीवादी शक्ति के स्थान पर दूसरी फासीवादी शक्ति का समर्थन नही कर सकते, इसलिए इसके विरुद्ध एंग्लो-अमेरिकन गठबंधन बनाया जाए।"




  • क्यूबा मिसाइल संकट 1962


  • शीत युद्ध रक्त रंजित युद्ध का रूप नही ले सका, क्यों?

अपरोध रोक और संतुलन का सिद्धांत


  • द्विध्रुवीयता या द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था।

  1. महाशक्तियों की संख्या में कमी

  2. परमाणु युद्ध का भय


  • महाशक्तियों को छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखने से लाभ।

  1. संसाधनों की प्राप्ति

  2. भू क्षेत्र सैन्य संचालन हेतु

  3. सैनिक अड्डा

  4. आर्थिक मदद

  5. विचारधारा का प्रचार प्रसार




होमवर्क



  • शीत युद्ध का क्या अर्थ है? इसके कारणों को विस्तार से समझाइये।


  • क्यूबा मिसाइल संकट 1962 पर संछिप्त निबंध लिखिए।


  • शीत युद्ध रक्त रंजित युद्ध का रूप नही ले सका, क्यों?


  • महाशक्तियों को छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखने से क्या फायदे थे?


  • शीत युद्ध का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?


शीत युद्ध के दायरे


  • चर्चिल का फुल्टन भाषण

  • मार्शल व ट्रूमैन योजना।

  • पश्चिमी यूरोप में तेजी से विकास।

  • पूर्वी यूरोप के लोगों द्वारा पश्चिमी यूरोप में पलायन।

  • बर्लिन की नाकेबंदी 1948

  • नाटो का गठन।

  • साम्यवादी चीन का उदय 1949

  • कोरिया संकट (1950-53)

1945 तक जापान का उपनिवेश था

  • सीटो(1954) सेंटो(1955) व वारसा पैक्ट(1955) का गठन।

  • स्वेज नहर संकट (1956)

मिस्र में स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

  • कांगो संकट 1960

1960 तक बेल्जियम का उपनिवेश था इसके बाद कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य बना। लेकिन यहाँ राजनीतिक उथल-पुथल प्रारंभ हो गया।

  • बर्लिन की दीवार बनी (1961)

  • क्यूबा मिसाइल संकट (1962)

  • तनाव शैथिल्य का दौर

NTBT-1963

NPT-1968


  • वियतनाम संकट (1965-75)

1941 तक फ्रांस का उपनिवेश

इसके बाद जापान का कब्जा

जापान की पराजय के बाद उत्तरी वियतनाम का चीन के सम्मुख आत्मसमर्पण, जबकि दक्षिण वियतनाम का अमेरिका के सम्मुख आत्मसमर्पण।


  • अफगानिस्तान संकट-1979-1989

अफगान मुजाहिदीन लड़ाके अफगानिस्तान की साम्यवादी सरकार को अपदस्थ करना चाहते थे।अतः अफगानिस्तान की साम्यवादी सरकार की सहायता के लिए सोवियत संघ ने सेना भेजी।


  • स्टार वॉर प्लान 1983 - रीगन

  • गोर्बाचोव के सुधार

  • बर्लिन की दीवार गिरी ( 9 नवंबर 1989)

  • जर्मनी का एकीकरण (1990)

  • सोवियत संघ का विघटन (1991)

  • शीत युद्ध का समापन।


  • शीत युद्ध का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव या परिणाम।

  1. पूरा विश्व द्वि-ध्रुवीय हो गया।

  2. गुटबंदी का दौर प्रारंभ हो गया।

  3. हथियारों की होड़ प्रारंभ हो गयी।

  4. UNO की कार्यक्षमता में कमी आयी।

  5. महाशक्तियों में आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में तेजी से विकास।

  6. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय।





गुटनिरपेक्ष आंदोलन

Non Alliance Movement (NAM)


संस्थापक सदस्य देश


  1. भारत- जवाहरलाल नेहरू

  2. मिस्र - गमाल अब्दुल नासिर

  3. यूगोस्लाविया- जोसेफ ब्राज टीटो

  4. इंडोनेशिया - सुकर्णो

  5. घाना - वामे एनक्रूमा


  • बांडुंग(इंडोनेशिया) सम्मेलन 1955

  • पहला शिखर सम्मेलन 1961 बेलग्रेड (यूगोस्लाविया), 25 सदस्य।

  • 18वां सम्मेलन 2019 अजरबेजान (बाकू), 120 सदस्य सम्मिलित।


गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य या सिद्धांत या विशेषताएं


1-सैन्य गुटों में शामिल न होना।

2-नवस्वतंत्र देशों को गुटबंदी से दूर रखना।

3-दुनिया को तीसरा विकल्प देना।

4-शीत युद्ध के प्रसार को रोकना।

5- स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना।

6-आपसी एकता को बढ़ावा देना।

7-वैश्विक आर्थिक असमानता का विरोध।

8-नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) का समर्थन।

9-UNO के सिद्धांतों में विश्वास।

10-शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देना।


गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद नही है।


गुटनिरपेक्षता तटस्थता का धर्म निभाना भी नही है।



  • भारत या तीसरी दुनिया के देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनायी?

  1. शांतिपूर्ण विकास करने की इच्छा।

  2. शीत युद्ध का भय।

  3. स्वतंत्र विदेश नीति की इच्छा।

  4. दोनों गुटों से सहायता का विकल्प खुला रखना।

  5. विश्व शांति का समर्थन।


गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता

  • वैश्विक मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा।

  • तीसरी दुनिया मे परस्पर सहयोग को बढ़ावा।

  • स्वतंत्र विदेश नीति का विकल्प।

  • समानता के सिद्धांत पर आधारित संबंध।

  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पिछड़े देशों की आवाज।

  • विश्व शांति को बढ़ावा।


  • क्या भारत को गुटनिरपेक्षता की नीति से फायदा हुआ?

  1. दोनों महाशक्तियों के दबाव से मुक्त स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने में सफल।

  2. अपने संसाधनों का स्तेमाल अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर सका।

  3. दोनों ही गुटों से सहायता प्राप्त कर सका।

  4. तीसरी दुनिया के नेतृत्वकर्ता के रूप में पहचान बनाने में सफल।


  • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना।

  1. सिद्धांत विहीन व अवसरवादी नीति।


  1. अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उचित निर्णय लेने से बचने का प्रयास किया।


  1. दूसरे देशों को गुटबंदी से दूर रहने की सलाह देने वाला भारत स्वयं 1971 में सोवियत संघ से 20वर्षीय मैत्री संधि कर ली।


  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत का योगदान

  1. तीसरी दुनिया के देशों को गुटबंदी से दूर रखा।

  2. वैश्विक मामलों में सक्रिय भागीदारी निभाई, जैसे कोरिया संकट।

  3. शीत युद्ध के तनाव को कम करने की अपनी मुहिम में अन्य देशों को भी जोड़ा।

  4. तीसरी दुनिया में परस्पर सहयोग की बात की।

  5. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तीसरी दुनिया का नेतृत्व किया।



  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन का योगदान

  1. तीसरी दुनिया के देशों को शीत युद्ध से अलग रखने में सफल।

  2. तीसरी दुनिया के देश ऐसे अंतर्राष्ट्रीय निर्णय लेने में सफल रहे जो उनके हित में थे।

  3. वे अपनी स्वतंत्रता व संप्रभुता को बनाए रख सके।

  4. दोनों गुटों से सहायता प्राप्त करने में सफल भी रहे।

  5. शीत युद्ध को समाप्त करने में सफल।


नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?


 विश्व के विभिन्न देशों के बीच भारी आर्थिक विषमता हैं। एक तरफ जहां आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक संपन्न विकसित देश हैं तो वहीं दूसरी तरफ गरीबी,भुखमरी और बीमारी से ग्रसित अल्पविकसित देश। इसी आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए अल्पविकसित देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1960 के बाद एक अभियान चलाया गया,जिसमें यह मांग की गई कि अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं का पुनर्गठन इस प्रकार किया जाए कि जिससे अल्पविकसित देश अपनी गरीबी भुखमरी को दूर कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में विकास कर सकें।इस व्यवस्था में विकसित देशों को अल्पविकसित व विकासशील देशों को आर्थिक व तकनीकी सहायता प्रदान करना था। इसे ही नवीन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का नाम दिया गया।


उत्तर-दक्षिण संवाद का क्या हैं?


अधिकतर विश्व के धनी देश उत्तर में हैं जबकि पिछड़े हुए या विकासशील देश बड़ी संख्या में दक्षिण में है। 1960 के बाद विकासशील देशों ने यह अभियान चलाया की विकसित देशों का यह दायित्व है कि वे अविकसित व विकासशील देशों को वित्तीय सहायता व नई प्रौद्योगिकी देकर सहयोग करें। 1973 में अल्जीयर्स (अल्जीरिया) में गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन हुआ जहां नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था लाने का प्रस्ताव पास किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संदर्भ में ब्रांडट आयोग(पश्चिमी जर्मनी के पूर्व चांसलर विल्ली ब्रांडट की अध्यक्षता में) गठित किया गया। जिसकी सिफारिशों पर विस्तृत चर्चा हुई। इसी चर्चा को उत्तर दक्षिण संवाद करते हैं। खेद की बात यह है कि विकसित देशों के असहयोग के कारण इस अभियान को सफलता नहीं मिली।




सामूहिक आत्मनिर्भरता व दक्षिण-दक्षिण सहयोग का क्या अर्थ है?


नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में 1960 के बाद जो उत्तर-दक्षिण संवाद चला उसे उत्तर के विकसित देशों के असहयोग के कारण सफलता नही मिल सकी ।अतः सन1980 के बाद विकासशील देशों ने यह अभियान चलाया कि वे परस्पर सहयोग से अपना विकास करें। इनके लिए 15 विकासशील देशों का गुट G-15 बना। भारत ने इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई।


NIEO क्या है?

  • अल्पविकसित देशों के विकास के लिए यह व्यवस्था है

  • इन देशों के सम्मुख मुख्य चुनौती अपनी जनता को गरीबी और भुखमरी से उबारने की है।

  • नवस्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास जरूरी था क्योंकि सही मायने में बगैर आर्थिक व टिकाऊ विकास के कोई देश ज्यादा दिन स्वतंत्र नही रह सकता।

  • उक्त आवश्यकताओं के कारण ही NIEO का जन्म हुआ।

  • सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन(UNCTAD) में 'टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फ़ॉर डेवलपमेंट' नाम से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। इसमें वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार की बात कही गयी थी।


पुरानी  अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की विशेषताएं


  1. विकसित देशों के हितों की रक्षा करती है।

  2. इस व्यवस्था में विकसित राष्ट्रों का एकाधिकार था।

  3. असमानता पर आधारित।

  4. विकसित देशों को विकासशील देशों के बाजार पर कब्जा था।

  5. विकासशील देशों की पहुंच विकसित देशों के बाजारों तक नही थी।

  6. विकसित देश तकनीकी ज्ञान से सम्पन्न थे जबकि विकासशील देश इससे वंचित।

  7. विकसित देश तकनीकी उपलब्ध कराने के बहाने विकासशील देशों के संसाधनों का दोहन करते थे।


नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की विशेषताएं


  1. अल्पविकसित देशों को अपने संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो।

  2. अल्पविकसित देशों की पहुँच विकसित देशों के बाजारों तक होनी चाहिए।

  3. विकसित देशों से प्राप्त होने वाली तकनीक की लागत कम होनी चाहिए।

  4. अल्पविकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में भूमिका बढ़नी चाहिए।

  5. अल्पविकसित देशों के वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।

  6. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गतिविधियों पर नियंत्रण।

  7. समानता पर आधारित व्यवस्था लागू हो



शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण यह दोनों प्रक्रिया एक साथ पैदा हुई।इस प्रक्रिया के क्या कारण थे?


  • हथियारों की होड़


  • प्रमुख कारण एक दूसरे पर अविश्वास के कारण अधिक से अधिक शक्ति अर्जित करना चाहते थे।


  • चूंकि इन्हें इस बात की जानकारी नही होती थी कि हमारा शत्रु कितना शक्तिशाली है और किन-किन हथियारों को को कितनी मात्रा में तैयार कर लिया है।


  • हथियारों पर नियंत्रण


  • इसका प्रमुख कारण दोनों ही महाशक्तियां अधिक से अधिक परमाणु हथियारों को संग्रहित कर लेने के बाद भी असुरक्षित महसूस कर रही थी।

  • दोनों महाशक्तियों के बीच होता तो व्यापक विनाश होता।ऐसे में विजेता का पता लगाना भी मुश्किल हो जाता।

  • इसलिए दोनों ही महाशक्तियों ने हथियारों को सीमित करने के लिए शस्त्र नियंत्रण व निःशस्त्रीकरण संधियों का सहारा लिया।


  • प्रमुख संधियां


  • LTBT (Limited Test Ban Treaty)

सीमित परमाणु परीक्षण संधि।

  • 15 अगस्त 1963 को दोनों महाशक्तियों ने इस पर हस्ताक्षर किए।

  • 10 अक्टूबर 1963 को यह संधि प्रभावी हुई।

  • इसके अनुसार वायुमंडल, अंतरिक्ष व जल में परमाणु परीक्षण को प्रतिबंधित किया गया।


  • NPT (Non Proliferation Treaty)

परमाणु अप्रसार संधि।

  • इस संधि पर 1 जुलाई 1968 को हस्ताक्षर हुए।

  • 5 मार्च 1970 से प्रभावी।

  • इस संधि के अनुसार 1 जनवरी 1967 तक परमाणु हथियार प्राप्त कर लेने वाले देशों को परमाणु शक्ति संपन्न देश माना गया।

  • इस समय तक अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन परमाणु शक्ति सम्पन्न थे।

  • परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के अतिरिक्त किसी अन्य देश को परमाणु हथियार रखने या विकसित करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।


  • SALT(Strategic Arms Limitations Treaty)-1 (1972)

  • SALT-2 (1979) सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि।


  • सामरिक रूप से ख़तरनाक हथियारों को सीमित करना।


  • START (Strategic Arms Reduction Treaty)-1 (1991)

  • START-2 (1993) सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि।


  • सामरिक रूप से घातक हथियारों की संख्या में कटौती करना

 

प्रश्न-उत्तर


प्रश्न-1 : शीत युद्ध विचारधाराओं के बीच संघर्ष है।इस कथन से आप क्या समझते हैं?


उत्तर : अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधाराओं के बीच संघर्ष का तात्पर्य है कि दुनिया में आर्थिक, सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे अच्छा मार्ग कौन सा है , इस बात पर मतभेद होना है।


  • अमेरिका ऐसा मानता था कि पूंजीवादी व्यवस्था दुनिया की सबसे बेहतर व्यवस्था है।


  • सोवियत संघ मानता था कि समाजवादी, साम्यवादी अर्थव्यवस्था ही सबसे। बेहतर तरीके बेहतर है।


  • पूंजीवाद में सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होता है, व्यापार अधिक होता है, व्यवस्था में निजी लोगों का वर्चस्व रहता है।


  • साम्यवाद में सम्पूर्ण व्यवस्था सरकार के हाथ में होती है। निजी व्यवस्था का विरोध होता है।


 प्रश्न- 2 : शीत युद्ध के कोई दो प्रमुख कारण लिखिए ?


उत्तर : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दोनों ही महाशक्तियां एक दूसरे पर अविश्वास के कारण आमने-सामने खड़ी हो गई। उनके बीच हथियारों की होड़ शुरू हो गई। यही घटना शीत युद्ध का कारण बनी।


प्रश्न- 3 : प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध कब हुआ?


उत्तर : प्रथम विश्व युद्ध -1914 से 1918 तक हुआ।

द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक हुआ।


 प्रश्न- 4 : अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम क्यों गिराया था?


उत्तर:- अमेरिका ने अगस्त 1945 में जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये।


अमेरिका के द्वारा गिराए गए परमाणु बमों के गुप्त नाम लिटिल बॉय और फैट मैन था।

इन बमों की क्षमता 15 से 21 किलो टन थी।


अमेरिका की आलोचना-  जापान आत्मसमर्पण करने वाला था तो बम गिराने की कोई जरूरत नहीं थी।


अमेरिका ने अपने पक्ष में कहा-  हम चाहते थे कि द्वितीय विश्वयुद्ध जल्दी से जल्दी खत्म हो जाए और आगे का नुकसान ना हो।


हमले के पीछे का असली उद्देश्य- अमेरिका सोवियत संघ को दिखाना चाहता था कि अमेरिका ही एक मात्र विश्वशक्ति है।



प्रश्न- 5 : क्यूबा मिसाइल संकट क्या है?


  • उत्तर : क्यूबा एक छोटा सा द्वीपीय देश है जो कि अमेरिका की तट से लगा है और फिदेल कास्त्रो यहां के राष्ट्रपति थे।

  •  यह भौगोलिक रूप से अमेरिका के नजदीक था लेकिन साम्यवादी होने के कारण इसका जुड़ाव सोवियत संघ के साथ था। सोवियत संघ क्यूबा को हर प्रकार की सहायता देता था।

  • सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव ने यह तय किया कि क्यूबा को सोवियत संघ के सैनिक अड्डे के रूप में बदल दिया जाए और 1962 मैं ऐसा कर भी दिया गया।

  • अब सोवियत संघ अमेरिका के ऊपर पास से हमला कर सकता था और अमेरिका को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता था।

  • अमेरिका को इस बात का पता 3 हफ्ते के बाद लगा। अतः अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने क्यूबा की नाकेबंदी कर दी।

  • लेकिन दोनों महाशक्तियां ऐसा कुछ करने से डर रही थी कि कहीं दोनों के बीच परमाणु युद्ध शुरू ना हो जाए। इसलिए संकट को सुलझा लिया गया।

  • क्यूबा मिसाइल संकट को शीत युद्ध का चरम बिंदु कहा जाता है।


 

प्रश्न- 6: छोटे देशों को महाशक्तियों के गुट में जुड़ने से क्या लाभ थे।

उत्तर :

सैन्य सुरक्षा की गारंटी

सैन्य साज सामानों से मदद

आर्थिक मदद


 प्रश्न- 7: महाशक्तियां छोटे-छोटे देशों को क्यों अपने गुट में शामिल करना चाहती थी?


उत्तर : 

  1. कच्चे माल की प्राप्ति- जैसे खनिज, तेल, पेट्रोलियम आदि की प्राप्ति।

  2. सैनिक ठिकाने स्थापित करने हेतु भू क्षेत्र की प्राप्ति - जिससे कि जासूसी कर सकें।

  3. आर्थिक मदद- भारी भरकम सैनिक खर्चे की भरपाई हेतु।

  4. अपनी विचारधारा का प्रचार प्रसार हेतु।


 

प्रश्न- 8 : शीत युद्ध के दायरे स्पस्ट कीजिए?


उत्तर : विरोधी खेमों में सम्मिलित देशों को कई बार युद्ध संकट का सामना करना पड़ा ,युद्ध की संभावना रही लेकिन कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ।

 जैसे कोरिया संकट,वियतनाम संकट और अफगानिस्तान संकट। इन्ही घटनाओं को शीत युद्ध के दायरे कहा जाता है।


 

प्रश्न- 9 : द्विध्रुवीयता का क्या अर्थ है?


उत्तर : दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद पूरा विश्व अमेरिका तथा सोवियत संघ के गुटों में बंट गया। इसे ही द्विध्रुवीयता कहते हैं।


  • पश्चिमी गुट -अमेरिकी नेतृत्व (पहली दुनिया)

  • पूर्वी गुट  - सोवियत संघ का नेतृत्व (दूसरी दुनिया)


 

 प्रश्न-10 : अमेरिकी संगठन नाटो के बारे में लिखें ?


उत्तर : पूरा नाम- उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ।

स्थापना - अप्रैल 1949।

संस्थापक सदस्य - 12।

उद्देश्य- सभी 12 सदस्य मिलकर रहेंगे। अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो हम सभी अपने ऊपर हमला मानेंगे और मिलकर उसका मुकाबला करेंगे।


 

प्रश्न-11 : सोवियत संघ के संगठन "वारसा संधि" को समझाइये।


उत्तर :- यह सैन्य गुट सोवियत संघ ने 1955 में बनाया। इसका उद्देश्य नाटो का मुकाबला करना था।


 

प्रश्न-12 : गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?


उत्तर : शीत युद्ध काल में पूरी दुनिया दो शक्ति गुटों में बंट चुकी थी। ऐसे में दो ध्रुवीयता को चुनौती देते हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) का उदय हुआ ।

गुटनिरपेक्षता का अर्थ है दोनों ही सैन्य गुटों में शामिल ना होना और इनसे समान रूप से दूरी बनाए रखना।


 

प्रश्न- 13 : गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेताओं के नाम बताएं?


उत्तर : यूगोस्लाविया - जोसेफ बाज टीटो

भारत- पंडित जवाहरलाल नेहरू

मिस - गमाल अब्दुल नासिर

घाना - वामे एनक्रूमा

इंडोनेशिया= शुकर्णो


 प्रश्न-14 : प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कब और कहां हुआ ?


उत्तर :  1961 (बेलग्रेड में)

कुल 25 देश सम्मेलन में भाग लिए थे।

 

प्रश्न- 15 : गुटनिरपेक्षता ना तो पृथकतावाद है और ना ही तटस्थता, समझाओ?


उत्तर :- पृथकतावाद का अर्थ होता है अपने आप को अंतरराष्ट्रीय मामलों से काट के रखना । अर्थात बस अपने आप से मतलब रखना, दूसरे देशों के मामलों में कोई रुचि नही रखना। जैसा कि अमेरिका ने (1789-1914) तक किया था ।

* भारत (गुट निरपेक्ष देशों) ने ऐसा नहीं किया, गुटनिरपेक्षता को तो अपनाया लेकिन पृथकतावाद की नीति नहीं अपनायी।

* भारत (गुट निरपेक्ष देशों) ने आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न देशों से मदद भी लिया और दूसरों की मदद भी किया।


तटस्थता का अर्थ है युद्धरत देशों से दूरी बना के रखना और युद्ध को समाप्त करने के लिए न तो कोई प्रयास करना और न ही कौन गलत है? कौन सही है? इस पर कोई बयान देना। जबकि तटस्थ देश युद्ध में तो शामिल नही होता लेकिन सही गलत पर अपने विचार व्यक्त करता है और युद्ध को समाप्त कराने हेतु प्रयास भी करता है।

अतः यह स्पष्ट है कि गुटनिरपेक्षता न तो पृथकतावाद है और न ही तटस्थता।


  

प्रश्न-16 : गुटनिरपेक्षता को अपनाकर भारत को क्या लाभ हुआ ?


उत्तर : 1- भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप सभी अंतर्राष्ट्रीय फैसले स्वतंत्र रूप से ले पाया,किसी महाशक्ति के दबाव में नही आया।

2- गुटनिरपेक्षता से भारत हमेशा ऐसी स्थिति में रहा कि अगर कोई एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाए तो वह दूसरे की तरफ जा सकता था ऐसे में कोई भी भारत को लेकर ना तो बेफिक्र रह सकता था ना दबाव बना सकता था।


 

प्रश्न- 17 : भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना हुई? समझाओ।

उत्तर :

1) आलोचकों का कहना है कि भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धांत विहीन है। भारत इसकी आड़ में अंतर्राष्ट्रीय फैसले लेने से बचता रहा है।

2) भारत के व्यवहार में स्थिरता नहीं है। एक तरफ वह गुटबंदी से दूर रहने की बात करता है दूसरी तरफ वह भारत-पाक युद्ध 1971 के समय सोवियत संघ से मैत्री संधि कर ली थी।

 


 प्रश्न-18 : गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रकृति धीरे-धीरे बदली है, कैसे?


उत्तर : जब यह आंदोलन आया था तब इनका मुख्य उद्देश् अपने आप को महाशक्तियों के दबाव से बचाना था ।

लेकिन बाद में इसकी प्रकृति में परिवर्तन हो गया।अब तीसरी दुनिया के देशों के आर्थिक विकास का मुद्दा सबसे ज्यादा प्रबल हो गया है।


 


एक अंकीय प्रश्न


1- वाक्य को सही करके लिखें - अमेरिका ने पूँजीवादी देशों को लेकर 1949 में वारसा संधि की।


उत्तर : नाटो संधि की।


 2- N.P.T. व NATO का शब्द विस्तार लिखे।


उत्तर : (A) NATO- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन।

(B) NPT- परमाणु अप्रसार संधि।


 3- किन्हीं दो धुरी देशों के नाम बताएँ।


उत्तर : जर्मनी, इटली, जापान


 4. ऐसे दो मित्र देशों के नाम बताएं, बाद में जिनके मध्य शीतयुद्ध हुआ।


उत्तर : सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका।


 5. अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के किन दो शहरों पर परमाणु बम गिराए थे?


उत्तर : हिरोशिमा, नागासाकी


 6. परमाणु बमों के गुप्त नाम क्या थे?


उत्तर : लिटिल ब्वॉय, फैटमैन


 7. SALT का पूरा नाम लिखिए।


उत्तर : सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि 


 8. START का पूरा नाम लिखिए।


उत्तर :- START - सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि ।


 9. UNCTAD का पूरा नाम लिखिए।


उत्तर : UNCTAD संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन ।


 10. गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक किन्ही दो देशों एवं उनके नेताओं के नाम लिखें।


उत्तर : भारत - जवाहर लाल नेहरू

इण्डोनेशिया - सुकर्णो


 11. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

क्यूबा का मिसाइल संकट .......... द्वारा क्यूबा में........ तैनात करने के कारण था।


उत्तर : सोवियत संघ      परमाणु मिसाइलें


 12. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।


.......... में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन की स्थापना हुई जिसमें... ...देश शामिल थे।


उत्तर : 1949, 12


 13. प्रथम गुट निरपेक्ष सम्मेलन में कितने देश शामिल हुये ?


A- 15,

B- 20,

C- 30

D- 25


उत्तर : D-25


 14. अमेरिकी सैन्य गुट का नाम लिखें


उत्तर :- नाटो, सीटो, सेंटो।


 15. गुट निरपेक्ष आंदोलन में शामिल युगोस्लाविया के नेता का नाम लिखें ?


उत्तर :- जोसेफ ब्रॉज टीटो


 16. तीसरी दुनिया से क्या अभिप्राय है?


उत्तर : द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अफ्रीका व एशिया के नव स्वतंत्र देश, जिसका विकास कम हुआ है या हो रहा है । अल्पविकसित, विकासशील देशों के समूह।


 17. निम्नलिखित घटनाओं को क्रमानुसार लिखें।


i) नाटो की स्थापना

ii) प्रथम विश्वयुद्ध

iii) हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराना

 iv) वारसा संधि


उत्तर : 1 ii

2. iii

3. i

4. iv


 18. शीतयुद्ध काल में एक पूर्वी तथा एक पश्चिमी गठबंधन के नाम लिखें।


उत्तर : पूर्वी गठबंधन- वारसा संधि

पश्चिमी गठबंधन-NATO

 

19. क्युबा मिसाइल संकट के दौरान सोवियत संघ के नेता कौन थे ?


उत्तर : निकिता खुश्चेव


 20. प्रथम विश्वयुद्ध कब से कब तक हुआ ?


उत्तर : 1914-1918


 

द्विअंकीय प्रश्न


1. शीत युद्ध से क्या तात्पर्य है?


उत्तर :- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात दोनों महाशक्तियों (अमेरिका और सोवियत संघ) के बीच रक्त रंजित युद्ध के स्थान पर प्रतिद्वंद्विता व तनावपूर्ण संबंधों को शीत युद्ध कहा जाता है।


 

2. गुट निरपेक्षता से क्या अभिप्राय है?


उत्तर :- दोनों महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने की नीति को गुट निरपेक्षता कहते हैं।


 3. नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य क्या था ?


उत्तर : अल्पविकसित देशों को अपने संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण हो तथा पश्चिमी देशों के बाजारों तक उनकी पहुँच हो।


 

4. भारत सैन्य गुटों में शामिल क्यों नहीं हुआ?


उत्तर : भारत गुटबंदी और शीत युद्ध से दूर रहकर शान्ति पूर्ण विकास करना चाहता था तथा दोनों ही महाशक्तियों से सहायता प्राप्ति के विकल्प खुला रखना चाहता था।


 

5. अस्त्र नियंत्रण हेतु महाशक्तियों ने किन दो संधियों पर हस्ताक्षर किए?


उत्तर :- LTBT.,NPT, SALT, START.



6. अपरोध किसे कहते है ?


उत्तर :- अपरोध अर्थात् रोक और संतुलन। जब दोनों पक्ष विनाश करने में समर्थ हो तो कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता।


 

7. क्यूबा मिसाइल संकट के समय USA तथा USSR का नेतृत्व कौन कर रहा था ?


उत्तर :- U.S.A. - जॉन एफ केनेडी

           U.S.S.R. - निकिता खुश्चेव।


 


 चार अंकीय प्रश्न


1. महाशक्तियाँ छोटे देशों को अपने साथ क्यों रखती थीं ? (Imp.)


उत्तर :- हो चुका है।


 

2. क्यूबा मिसाइल संकट शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था' स्पष्ट करें? (Imp.)


उत्तर :- 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी और अमेरिका सीधे इनके निशाने पर आ गया परन्तु अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी की जबावी कार्यवाही के बाद सोवियत संघ ने मिसाइलें हटा ली। यदि ऐसा नही होता तो परमाणु युद्ध निश्चित था। दोनों महाशक्तियों के मध्य तनाव और प्रतिद्वदिता ने युद्ध का रूप नहीं लिया लेकिन युद्ध की संभावना इस संकट के समय सर्वाधिक थी, इसीलिए क्यूबा मिसाइल संकट को शीतयुद्ध का चरम बिंदु कहा जाता है।


 

3. गुट निरपेक्षता की नीति के चार सिद्धांत लिखें।


उत्तर :- 1- स्वतंत्र विदेश नीति।

2-महाशक्तियों के गुटों से अलग रहना।

3-साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध करना।

4-विश्व शांति व सह अस्तित्व

5-रंगभेद का विरोध करना।

6-आपसी विवादों को बातचीत से सुलझाना।

7-U.N.O. में विश्वास।



4. नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था क्या है? इसकी दो विशेषताएँ बतायें।


उत्तर :- अल्पविकसित देशों द्वारा अपने आर्थिक तथा टिकाऊ विकास के लिए विकसित देशों के सम्मुख जो आर्थिक मॉडल प्रस्तुत किया उसे नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था या NIEO कहते हैं।


 इनकी दो विशेषताएँ निम्न हैं :


(i) अल्प विकसित देशों का अपने प्राकृतिक साधनों पर पूर्ण नियंत्रण हो।

(ii) अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों में भूमिका बढ़े।


 

5. “गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना नहीं है।" उपरोक्त वाक्य को स्पष्ट करें।


उत्तर :- "गुट निरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना नहीं है।" उक्त कथन से तात्पर्य है कि मुख्यतः युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना तटस्थता की नीति कहलाती है। तटस्थता की नीति का पालन करने वाले देश के लिए यह जरूरी नहीं कि वह युद्ध को समाप्त कराने का प्रयास करे।अर्थात ऐसे देश न तो युद्ध में संलग्न होते हैं और न ही युद्धरत देशों में कौन सही है और कौन गलत है इसके बारे में उनका कोई पक्ष ही होता है।

 जबकि गुटनिरपेक्ष देश, जिसमें भारत भी शामिल है, युद्धरत देशों के बीच मध्यस्थता करके युद्ध को समाप्त करने के प्रयास किये और युद्धरत देशों देशों में कौन सही है कौन गलत है इस पर अपने विचार भी रखे।

 

पाँच अंक के प्रश्न


1-निम्न अवतरण को पढ़े तथा उत्तर दें 


शीतयुद्ध सिर्फ जोर-आजमाइश, सैनिक गठबंधन तथा शक्ति संतुलन का मामला भर नहीं था बल्कि इसके साथ साथ विचारधारा के स्तर पर भी वास्तविक संघर्ष जारी था।


(i) शीतयुद्ध जिन दो महाशक्तियों के बीच था, उनके नाम लिखें।


(ii) दोनों महाशक्तियों द्वारा बनाये गये सैन्य गठबंधनों में से एक-एक का नाम लिखें।


(iii) उपरोक्त गद्यांश में किन विचारधाराओं के मध्य संघर्ष की बात की जा रही है? किस विचारधारा वाले देश का विघटन हो गया ?


उत्तर :- 1- अमरीका व सोवियत संघ


2- NATO व वारसा संधि।


3- पूँजीवादी विचारधारा व साम्यवादी विचारधारा।


 


2. द्विध्रुवीय विश्व के उदय के क्या कारण थे ?

दोनों शक्ति गुटों के बीच शीतयुद्ध सम्बंधी दायरे कौन-कौन से थे ?


उत्तर : दोनों महाशक्तियाँ विश्व में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहती थी। अपनी सैन्य शक्ति, परमाणु ताकत, वैचारिक धारणा को बढ़-चढ़ कर दिखाना चाहती थी।

 

3. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद क्या गुट निरपेक्षता की नीति प्रासंगिक अथवा उपयोगी है? स्पष्ट करें। (Imp.)


उत्तर :- गुट निरपेक्षता की नीति की प्रासंगिकता।


1- स्वतंत्र विदेश नीति की इच्छा।

2-NIEO को लागू करना।

3- अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी पहचान तथा अस्तित्व को बनाये रखना।

4- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में विकसित देशों के वर्चस्व को चुनौती देना।

5- गरीब देशों के आर्थिक शोषण के विरुद्ध एकजुटता।

6- विश्वशांति तथा निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना।



4. शीतयुद्ध के परिणामों का वर्णन करें।


उत्तर :- शीत युद्ध के परिणाम

1- दो ध्रुवीय विश्व का उदय।

2- सैन्य संधियों का दौर।

3- गुट निरपेक्ष आंदोलन का उदय।

4-हथियारों की होड़।

5- महाशक्तियों की होड़ से विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ी, जिससे इस क्षेत्र में अधिक विकास हुआ।

6- U.N.O. की कार्यक्षमता में कमी।



5. शीतयुद्ध के तनाव को कम करने में भारत ने क्या भूमिका निभाई?


उत्तर :

1- गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया।

2-सैन्य गुटों में शामिल नहीं हुआ और अन्य देशों को भी इससे दूर रखा।

3- वैश्विक समस्याओं पर अपने स्वतंत्र विचार रखे।

4- महाशक्तियों से मित्रतापूर्ण संबंध बनाकर रखा और विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता भी की।

5- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को मजबूत करने की वकालत की।

6- कोरिया संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका।

7- शीत युद्ध को समाप्त करने की मुहिम चलाई और इससे अन्य देशों को भी जोड़ा।


 

महत्वपूर्ण प्रश्न


12वीं - राजनीति विज्ञान



निर्देश:-सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।खंड 'अ' के प्रश्न 1अंक के,खंड 'ब' के प्रश्न 3अंक के तथा खंड 'स' के प्रश्न 4अंक के हैं।


खण्ड - अ


1- क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट कब उत्पन्न हुआ?

2-भारत शीत युद्ध से अलग रहने के लिए किस आंदोलन की शुरूआत की?

3-भारत का सैनिक समझौतों के प्रति क्या दृष्टिकोण था?

4-शीत युद्ध का संबंध किन दो गुटों से है?

5-वारसा पैक्ट नामक सैनिक गठबंधन का निर्माण किस गुट ने किया?

6- NATO का पूरा नाम लिखिए।

7-बर्लिन की दीवार कब गिराई गई थी?

8- संयुक्त राष्ट्र के व्यापार व विकास सम्मेलन (अंकटाड) की स्थापना कब हुई?

9- परमाणु अप्रसार संधि पर भारत ने हस्ताक्षर नही किये।यह कथन सत्य है या असत्य?

10- कोरिया युद्ध के समय भारत का दृष्टिकोण क्या था?

11-शीत युद्ध कब समाप्त हुआ?

12-भारत ने अपना प्रथम नाभिकीय परीक्षण कब और कहाँ किया?

13-तीसरा दुनिया में किन देशों को सम्मिलित किया जाता है?

14-अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप कब हुआ?

15- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तीन कर्णधार कौन थे?

16- नाटो की स्थापना कब हुई?

17- वारसा पैक्ट की स्थापना कब हुई?

18- वारसा पैक्ट कब समाप्त हुआ?

19- वर्लिन की दीवार का निर्माण कब हुआ?

20-सीटो (SEATO) का पूरा नाम क्या है?

21-शीत युद्ध शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?

22- गुटनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया?

23- शीत युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था?

24- गुटनिरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था?

25-गुटनिरपेक्ष देशों की वर्तमान में सदस्य संख्या कितनी है?

26- 'पूर्व बनाम पश्चिम' पदबंध का आशय किससे है?

27- तनाव शैथिल्य का दौर कब शुरू हुआ?

28- G-77 का आशय दुनिया के किन देशों से है?

29- गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में कब आयोजित हुआ था?

30-किस गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रस्ताव पास किया गया?


खण्ड - ब


31- गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।

32- शीत युद्ध से क्या अभिप्राय है? इसे परिभाषित कीजिये।

33- द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन से आप क्या समझते हैं?

34- पहली दुनिया और दूसरी दुनिया के देशों से आप क्या समझते हैं?

35- शीत युद्ध काल में भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण क्यों किया?

36- क्यूबा मिसाइल संकट शीत युद्ध का चरम बिन्दु माना जाता है क्यों?

37- मार्शल एवं ट्रूमैन योजना के क्या उद्देश्य थे?

38- शीत युद्ध के तनाव को कम करने के लिए भारत की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

39- शीत युद्ध के कोई तीन महत्वपूर्ण कारण लिखिए।

40- गुटनिरेक्षता से क्या अभिप्राय है? यह तटस्थता से किस प्रकार अलग है?


खंड - स


41- नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।

42- शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों ने मिलकर  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पंगु बना दिए थे।इस कथन की विवेचना कीजिये।

43- द्वि-ध्रुवीय विश्व के उदय के क्या कारण थे? दोनों शक्ति गुटों के बीच शीत युद्ध संबंधी दायरे कौन- कौन से थे?

44- क्यूबा मिसाइल संकट के बाद दोनों ही महाशक्तियां तनाव को कम करने के लिए प्रयास करने लगी, जिसे तनाव शैथिल्य या दितांत कहा जाता है।तनाव शैथिल्य का अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?

45- गुटबंदी से क्या अभिप्राय है?महाशक्तियों को गुटबंदी के क्या फायदे थे?

46- जब गुटबंदी का दौर समाप्त हो गया है तो अब गुट-निरपेक्ष आंदोलन की क्या प्रासंगिकता है? अपने तर्क दीजिये।

47- गुट-निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा।जब शीत युद्ध चरम पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुचाई?

48- शीत युद्ध काल में भारत की विदेश नीति क्या थी?क्या इस नीति से भारत के राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि हुई?

49- शीत युद्ध काल में दोनों ही महाशक्तियों के मध्य एक तरफ हथियारों की दौड़ थी, तो दूसरी तरफ हथियारों को सीमित करने के लिए संधियां।ऐसा क्यों?

50- शीत युद्ध के दौरान की गई विभिन्न शस्त्र नियंत्रण संधियों का उल्लेख कीजिये।क्या इनसे विश्व समुदाय को लाभ हुआ?


1- क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट कब उत्पन्न हुआ?

1962।

2-भारत शीत युद्ध से अलग रहने के लिए किस आंदोलन की शुरूआत की?

गुटनिरपेक्ष आंदोलन।

3-भारत का सैनिक समझौतों के प्रति क्या दृष्टिकोण था?

किसी भी गुट में शामिल न होने की नीति।

4-शीत युद्ध का संबंध किन दो गुटों से है?

अमेरिकी गुट और सोवियत संघ गुट।

5-वारसा पैक्ट नामक सैनिक गठबंधन का निर्माण किस गुट ने किया?

सोवियत संघ गुट ने।

6- NATO का पूरा नाम लिखिए।

नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन।

7-बर्लिन की दीवार कब तैयार की गई थी?

1961।

8- संयुक्त राष्ट्र के व्यापार व विकास सम्मेलन (अंकटाड) की स्थापना कब हुई?

1972।

9- परमाणु अप्रसार संधि पर भारत ने हस्ताक्षर नही किये।यह कथन सत्य है या असत्य?

सत्य।

10- कोरिया युद्ध के समय भारत का दृष्टिकोण क्या था?

पहले तो भारत चुप रहा, लेकिन जब अमेरिकी गठबंधन सेना 38अंश अक्षांश के ऊपर बढ़ने की कोशिश की तो भारत ने अमेरिका की आलोचना की।

11-शीत युद्ध कब समाप्त हुआ?

1991।

12-भारत ने अपना प्रथम नाभिकीय परीक्षण कब और कहाँ किया?

1974 पोखरन।

13-तीसरी दुनिया में किन देशों को सम्मिलित किया जाता है?

निर्गुट विकासशील देशों को।

14-अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप कब हुआ?

1979।

15- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तीन कर्णधार कौन थे?

जवाहरलाल नेहरु, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो।

16- नाटो की स्थापना कब हुई?

1949।

17- वारसा पैक्ट की स्थापना कब हुई?

1955।

18- वारसा पैक्ट कब समाप्त हुआ?

1991।

19- वर्लिन की दीवार किसका प्रतीक थी?

द्विध्रुवियता व शीत युद्ध का।

20-सीटो (SEATO) का पूरा नाम क्या है?

साउथ ईस्ट एशियन ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन।

21-शीत युद्ध शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?

बर्नार्ड बारुश।

22- गुटनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया?

जार्ज लिस्का।

23- शीत युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था?

चर्चिल का फुल्टन भाषण।

24- गुटनिरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था?

बेलग्रेड 1961।

25-गुटनिरपेक्ष देशों की वर्तमान में सदस्य संख्या कितनी है?

120।

26- 'पूर्व बनाम पश्चिम' पदबंध का आशय किससे है?

शीत युद्ध।

27- तनाव शैथिल्य का दौर कब शुरू हुआ?

क्यूबा मिसाइल संकट-1962 के बाद।

28- G-77 का आशय दुनिया के किन देशों से है?

तीसरी दुनिया के विकासशील देश।

29- गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में कब आयोजित हुआ था?

1983 में।

30-किस गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रस्ताव पास किया गया?

1973 अल्जीयर्स शिखर सम्मेलन।

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