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12th Political Science Complete Notes

  📘 Part A: Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति) The Cold War Era (शीत युद्ध का दौर) The End of Bipolarity (द्विध्रुवीयता का अंत) US Hegemony in World Politics ( विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व ) Alternative Centres of Power ( शक्ति के वैकल्पिक केंद्र ) Contemporary South Asia ( समकालीन दक्षिण एशिया ) International Organizations ( अंतर्राष्ट्रीय संगठन ) Security in the Contemporary World ( समकालीन विश्व में सुरक्षा ) Environment and Natural Resources ( पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन ) Globalisation ( वैश्वीकरण ) 📘 Part B: Politics in India Since Independence (स्वतंत्रता के बाद भारत में राजनीति) Challenges of Nation-Building (राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ) Era of One-Party Dominance (एक-दलीय प्रभुत्व का युग) Politics of Planned Development (नियोजित विकास की राजनीति) India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) Challenges to and Restoration of the Congress System ( कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना ) The Crisis of Democratic...

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

1. अमेरिकी वर्चस्व का उदय और उसका आधार


1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका वैश्विक स्तर पर एकमात्र महाशक्ति बनकर उभरा। यह वर्चस्व केवल सैन्य शक्ति पर आधारित नहीं था, बल्कि इसमें आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व भी शामिल था।


सैन्य शक्ति: अमेरिका की सैन्य क्षमताएं अन्य सभी देशों से कहीं अधिक हैं, और इसका रक्षा बजट 12 शक्तिशाली देशों के कुल बजट से भी ज्यादा है।


आर्थिक शक्ति: अमेरिका की अर्थव्यवस्था वैश्विक जीडीपी का 28% हिस्सा रखती है और विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक में इसका प्रभाव अत्यधिक है।


सांस्कृतिक वर्चस्व: अमेरिकी जीवनशैली, उपभोक्तावादी संस्कृति, हॉलीवुड, फैशन, फास्ट फूड और तकनीक पूरी दुनिया में प्रभावी हो गई है।


2. अमेरिकी हस्तक्षेप और उसके प्रभाव


अमेरिका ने अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए कई युद्धों और सैन्य अभियानों को अंजाम दिया, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:


प्रथम खाड़ी युद्ध (1991) – ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म: इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण के जवाब में अमेरिका ने सैन्य हस्तक्षेप किया और इसे संयुक्त राष्ट्र की अनुमति भी मिली।


ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (1998): पूर्वी अफ्रीका में अमेरिकी दूतावासों पर अल-कायदा के हमले के जवाब में अफगानिस्तान और सूडान पर मिसाइल हमले।


9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ युद्ध – ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (2001): अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का पतन, लेकिन अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन बच निकला।


इराक युद्ध (2003) – ऑपरेशन इराकी फ्रीडम: अमेरिका ने इराक पर हमला कर सद्दाम हुसैन के शासन को समाप्त किया, लेकिन सामूहिक विनाश के हथियारों का कोई प्रमाण नहीं मिला।


3. अमेरिकी शक्ति के सामने बाधाएँ


हालांकि अमेरिका दुनिया की सबसे ताकतवर शक्ति है, लेकिन इसके वर्चस्व को चुनौती देने वाले कई कारक मौजूद हैं:


1. संवैधानिक संस्थागत ढांचा: अमेरिका में सत्ता का विभाजन है, जिससे कार्यपालिका पर अंकुश रहता है।


2. स्वतंत्र मीडिया और जनमत: वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी जनता ने युद्ध विरोधी आंदोलन किया, जिससे अमेरिका को पीछे हटना पड़ा।


3. नाटो और अन्य देश: अमेरिका अपने सहयोगी देशों पर निर्भर है, जो कभी-कभी उसकी नीतियों को चुनौती देते हैं।


4. अमेरिकी वर्चस्व से निपटने के उपाय


अमेरिकी प्रभुत्व को सीमित करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:


बैंडवैगन रणनीति: अमेरिका के साथ मिलकर उसके वर्चस्व का उपयोग अपने फायदे के लिए करना।


विरोध और दूरी बनाए रखना: अमेरिकी प्रभुत्व से बचने के लिए स्वायत्त नीतियाँ अपनाना।


राज्येतर संस्थाओं का सहयोग: सामाजिक आंदोलनों, बुद्धिजीवियों, मीडिया और अन्य समूहों के माध्यम से अमेरिकी नीतियों की आलोचना करना।


सामूहिक शक्ति: भारत, रूस, चीन और यूरोपीय संघ का एकजुट होकर अमेरिका को चुनौती देना, हालांकि इनके आपसी मतभेद इसे मुश्किल बनाते हैं।


निष्कर्ष


अमेरिका का वर्चस्व केवल सैन्य ताकत पर आधारित नहीं है, बल्कि इसकी आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पकड़ भी बहुत मजबूत है। हालाँकि इसके वर्चस्व को चुनौती देने के प्रयास किए जा सकते हैं, लेकिन वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका को पूरी तरह रोकना मुश्किल है। अतः देशों को संतुलित कूटनीति अपनाते हुए अमेरिकी प्रभुत्व से लाभ उठाने और इसकी नीतियों का विरोध करने के बीच संतुलन बनाना होगा।


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