Skip to main content

Class 9 – History Chapter 1: The French Revolution

📘 Chapter 1: The French Revolution – Summary 🔰 Introduction: The French Revolution began in 1789 and is one of the most significant events in world history. It marked the end of monarchy in France and led to the rise of democracy and modern political ideas such as liberty, equality, and fraternity . 🏰 France Before the Revolution: Absolute Monarchy: King Louis XVI ruled France with complete power. He believed in the Divine Right of Kings. Social Structure (Three Estates): First Estate: Clergy – privileged and exempt from taxes. Second Estate: Nobility – also exempt from taxes and held top positions. Third Estate: Common people (peasants, workers, merchants) – paid all taxes and had no political rights. Economic Crisis: France was in heavy debt due to wars (especially helping the American Revolution). Poor harvests and rising food prices led to famine and anger among the poor. Tax burden was unfairly placed on the Third Estate. Ideas of Enlightenmen...

अध्याय-2.3 : नियोजित विकास की राजनीति

  



आर्थिक विकास

आजादी के पूर्व भारत लगभग 190 वर्षों तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा। इस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन के आर्थिक हितों को पूरा करती थी। यहाँ से कच्चा माल ब्रिटेन भेजा जाता था और ब्रिटेन से बना समान भारत के बाजारों में बिकते थे।इसलिए भारत का औद्योगिक ढांचा पूरी तरह बर्बाद हो गया था।भूमि लगान की दरें बहुत ऊंची थी। उपज हो या न हो, लगान देना ही पड़ता था।जिसके कारण किसान और मजदूर गरीबी के कुचक्र में फंसे हुए थे।देश में बेरोजगारी और अशिक्षा चरम पर थी।अतः आजादी मिलते ही राष्ट्र के पुनर्निर्माण व विकास की जरूरत थी। इसीलिए नियोजन और विभिन्न विकास मॉडलों की चर्चा होने लगी।

नियोजन

वर्तमान में रहते हुए भूत के अनुभवों से सीख लेकर अपने भविष्य की बेहतरी के लिए एक निश्चित समयांतराल के लिए जिन नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण किया जाता है, उसे ही नियोजन कहते हैं। यह किसी भी क्षेत्र में लागू किया जा सकता है। जब इसे आर्थिक क्षेत्र में लागू करते हैं तो इसे आर्थिक नियोजन कहते हैं।

भारत में नियोजन की आवश्यकता

1-आजादी के समय देश में व्यापक गरीबी, बेरोजगारी,अशिक्षा और क्षेत्रीय असंतुलन था।जिसे समाप्त करने के लिए नियोजन आवश्यक था।

2- देश के संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करते हुए अधिकतम  उपयोगिता का सृजन करने के लिए नियोजन आवश्यक था।

3- देश के आधारभूत ढाँचे के निर्माण व विकास हेतु नियोजन आवश्यक था।

4-वर्तमान एवं भविष्य के मध्य उचित समन्वय स्थापित करने के लिए नियोजन आवश्यक था।

5- संविधान में उल्लेखित नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन हेतु आर्थिक नियोजन आवश्यक था।

6- सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु नियोजन आवश्यक था।

विकास के नाम पर राजनीतिक टकराव

देश के आर्थिक विकास के लिए हमारे पास विकल्प के रूप में दो तरह के मॉडल थे।प्रथम पूंजीवादी उदारवादी मॉडल, जिसके आधार पर अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप के देश तरक्की किये थे।लेकिन 1929-30 की आर्थिक मंदी ने इस मॉडल की कमियां उजागर कर दी थी।दूसरा मॉडल समाजवादी अर्थव्यवस्था का था।चूँकि इस मॉडल के समर्थक भारत में अधिक थे।इसलिए इसी मॉडल को प्राथमिकता देते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

पंचवर्षीय योजनाएं

भारत में पांच वर्षीय आर्थिक नियोजन को अपनाया गया है। इसीलिए इसे पंचवर्षीय योजनाएं कहा जाता है। हमारे देश में कुल 11 योजनाएं चलाई गई।12वीं योजनाकाल (2012-17) में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री मोदी जी ने योजना आयोग व पंचवर्षीय योजनाओं के पूरे कार्यक्रम को समाप्त घोषित कर दिया।योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया।

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

आजादी के बाद देश के पुनर्निर्माण एवं विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं 1 अप्रैल 1951 से प्रारंभ की गयीं। प्रथम योजनाकाल का मुख्य लक्ष्य कृषि क्षेत्र एवं सिंचाई सुविधाओं का विकास करके खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इसी योजना काल में भाखड़ा नांगल परियोजना, हीराकुंड परियोजना तथा दामोदर घाटी परियोजना का निर्माण किया गया।यह योजना अपने लक्ष्यों से कही ज्यादा सफल सिद्ध हुई।

दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61)

दूसरी पंचवर्षीय योजना पी सी महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी। इसके अंतर्गत मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।इस योजनाकाल का मुख्य लक्ष्य भारी एवं आधारभूत उद्योगों की स्थापना करना था।इसी योजनाकाल में भिलाई, राउरकेला एवं दुर्गापुर आयरन एंड स्टील प्लांट तथा चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स व इंटेगरल कोच फैक्टरी कपूरथला की स्थापना की गई।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66)

इस योजनाकाल का मुख्य लक्ष्य देश को आत्मनिर्भर एवं स्वतः स्फूर्तिवान बनाना था। इसका कारण यह था कि द्वितीय योजनाकाल में उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे कृषि क्षेत्र की अनदेखी के कारण खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया था। अतः इस योजनाकाल में कृषि और उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से ध्यान दिया गया। बोकारो आयरन एंड स्टील प्लांट इसी योजनाकाल में स्थापित किया गया था। भारतीय खाद्य निगम (FCI) की स्थापना भी इसी योजनाकाल में हुई थी।

तृतीय योजनाकाल में भारत-चीन युद्ध-1962 व भारत-पाकिस्तान युद्ध-1965 होने के कारण यह योजना पूर्णतः असफल साबित हुई। इस दौरान देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी थी।

____________________________________

हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रांति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख कीजिए। (CBSC)

तृतीय योजनाकाल के दौरान भारत-चीन युद्ध,भारत-पाकिस्तान युद्ध और देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे के कारण खाद्यान्नों का संकट उत्पन्न हो गया था। इसी दौरान विदेशी मुद्रा भंडार भी बहुत कम हो गया था।अतः खाद्यान्नों का पर्याप्त आयात भी नही हो पा रहा था।इस खाद्यान्न संकट से कुपोषण की समस्या गंभीर रूप धारण कर ली थी।एक अनुमान के मुताबिक बिहार के अनेक हिस्सों में उस समय प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी हो गया था।1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले वर्ष की तुलना में 34% बढ़ गयी थी। इस दौरान खाद्यान्नों की कीमतें भी काफी बढ़ गई थी। सरकार उस समय जोनिंग या इलाक़ाबन्दी की नीति अपना रखी थी। जिससे विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नही हो पा रहा था।इस नीति के कारण बिहार में खाद्यान्न का संकट और भी बिकराल रूप ले लिया और इन सब का खामियाजा समाज के सबसे गरीब तपके को भुगतना पड़ा। अब इस संकट से बाहर निकलने का एक मात्र विकल्प विदेशी सहायता ही थी। अतः अमेरिका से उधार गेहूँ के आयात करना पड़ा।

इस खाद्यान्न संकट ने नीति निर्माताओं को पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया। चूंकि इस संकट का सामना भारत अमेरिकी सहायता से कर रहा था इसलिए भारत पर अमेरिका लगातार इस बात का दबाव बना रहा था कि भारत अपनी कृषि नीतियों में संशोधन करें। अतः भारत ने खाद्यान्न सुरक्षा के लिए नई रणनीति अपनाई।अभी तक सरकार उन किसानों या कृषि क्षेत्रों को सहायता प्रदान करती थी, जो उत्पादन और उत्पादकता के मामले में पिछड़े हुए थे। लेकिन अब नई रणनीति के तहत सरकार उन किसानों या कृषि क्षेत्रों को सहायता देने का निर्णय लिया जहाँ सिंचाई की सुविधाएं थी और जो किसान पहले से समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो किसान पहले से सक्षम और सुविधा संपन्न हैं वो थोड़े सहयोग से ही  तेजी से उत्पादकता में वृद्धि कर सकते हैं। इस प्रकार पहले से सुविधा संपन्न क्षेत्रों और किसानों को उन्नति प्रजाति के बीज, उर्बरक और कीटनाशक व खरपतवारनाशक की सुविधा उपलब्ध कराई गई। जिससे उत्पादन और उत्पादकता में तेजी से उछाल आया।  इसीलिए इसे हरित क्रांति कहते हैं।

कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। यह क्रांति प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1967-68 में हुई थी। इस क्रांति से सबसे अधिक लाभ गेहूं के उत्पादन में हुआ था। पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाटक में हरित क्रांति से विशेष लाभ हुआ। इससे देश खाद्यान्नों के संदर्भ में आत्मनिर्भर हो गया।

सकारात्मक परिणाम 

1- कृषि एक लाभकारी व्यवसाय हो गया।जो लोग कृषि को हेय दृष्टि से देखते थे। वे भी कृषि की ओर आकर्षित होने लगे।

2- कृषि क्षेत्र का यंत्रीकरण हो गया। जिससे कृषि यंत्रों को बनाने वाले उद्योगों का विकास हुआ।

3- कृषि क्षेत्र में पहले से अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। जिससे बेरोजगारी कम हुई।

4- उत्पादन में वृद्धि से खाद्यान्नों की कालाबाजारी बन्द हो गयी।

5- खाद्यान्नों के आयात में कमी, जबकि निर्यात में वृद्धि हुई।

6- खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया।

7- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

नकारात्मक परिणाम

1- ग्रामीण क्षेत्रों में नए सम्पन्न वर्ग का उदय हुआ। जिससे गरीबों व मजदूरों का शोषण बढ़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में भी मालिक मजदूर के बीच की खाई बढ़ी, जिससे सामाजिक संघर्ष की स्थिति पैदा हो गयी।

2- कृषि क्षेत्र के यंत्रीकरण से जहां नई तकनीक के जानकार लोगों को काम मिला वही पुराने तरीकों के जानकार लोग बेकार हो गए।जिससे गांव से शहर की ओर पलायन बढ़ा। उदाहरण के तौर पर ट्रैक्टर चालक को तो काम मिला, जबकि हलवाहे बेरोजगार हो गए।

3- हरित क्रांति का अधिक लाभ बड़े और संपन्न किसानों को ही मिला। छोटे किसान अभी भी तंगहाली का जीवन जी रहे हैं।

4- दबावकारी किसान गुटों के विकास हुआ। जिससे सौदेबाजी की राजनीति शुरू हो गयी।

5- गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, तिलहन और सब्जियों के उत्पादन को विशेष महत्व दिया गया। जबकि कुछ परंपरागत फ़सलों का उत्पादन या तो बन्द हो गया या तो बहुत कम हो गया।

6- कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं  उत्पन्न हो गयी हैं। इसलिए अब जैविक खेती की बात हो रही है।

____________________________________

for more study material click here

Share this post:


Comments

Advertisement

POPULAR POSTS