11th राजनीति विज्ञानचैप्टर 1 : संविधान क्यो और कैसे
संविधान: अर्थ और आवश्यकता
संविधान नियमों और कानूनों का वह समूह है जो सरकार को संचालित करने और नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों को परिभाषित करने के लिए आवश्यक होता है। अंग्रेजी शब्द "Constitution" का अर्थ सरकार की संरचना से है। यह न केवल सरकार के विभिन्न अंगों (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका) के बीच संबंधों को स्पष्ट करता है, बल्कि सरकार और नागरिकों के बीच संबंधों को भी निर्धारित करता है। संविधान के बिना राज्य अराजकता में बदल जाता है, जैसा कि जेलिनेक ने कहा, "संविधान के बिना राज्य, राज्य नहीं, अराजकता होगी।"
संविधान की आवश्यकता
सीमित सरकार:
संविधान सरकार की शक्तियों को सीमित करता है, जिससे उसकी निरंकुशता पर अंकुश लगता है और नागरिकों के हितों की रक्षा होती है।
नागरिकों के अधिकारों की रक्षा:
यह नागरिकों के अधिकारों को परिभाषित और संरक्षित करता है। न्यायपालिका इन अधिकारों के उल्लंघन पर सरकार को नियंत्रित करती है।
सरकारी अंगों के बीच संबंध:
यह सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियों और उनके आपसी संबंधों को स्पष्ट करता है, जिससे टकराव की स्थिति समाप्त होती है।
लोकतंत्र की गारंटी:
संविधान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र की नींव रखता है। यह भेदभाव को खत्म करता है (जैसे, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17), आर्थिक असमानता को कम करता है और नागरिकों को वोट देने, चुनाव लड़ने व सरकार की आलोचना करने का अधिकार देता है।
हर शासन व्यवस्था—लोकतंत्र, राजतंत्र या तानाशाही—में संविधान होता है, चाहे वह लिखित हो या अलिखित। लेकिन एक संविधान की प्रभावशीलता उसके प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है।
संविधान को समर्थ और प्रभावी बनाने वाले तत्व
संविधान को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:
निर्माण का तरीका:
संविधान की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कैसे बना। भारतीय संविधान राष्ट्रीय आंदोलन के बाद, सभी वर्गों के प्रतिनिधियों द्वारा बनाया गया, जिससे इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली।
मौलिक प्रावधान:
यह जनता को यह विश्वास दिलाता है कि संविधान न्यायपूर्ण समाज की स्थापना कर सकता है और स्वतंत्रता व समानता की रक्षा करेगा।
संस्थाओं में शक्ति संतुलन:
शक्तियाँ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलित होती हैं, जिससे कोई भी संस्था निरंकुश न हो सके।
प्रभावी कार्यान्वयन:
संविधान केवल कागजी दस्तावेज नहीं होना चाहिए; सरकार को इसके वादों को साकार करना चाहिए।
जीवंत दस्तावेज:
यह समय और परिस्थितियों के अनुसार ढलने में सक्षम होना चाहिए, न बहुत कठोर हो, न बहुत लचीला।
भारतीय संविधान का निर्माण
संविधान सभा का गठन
संविधान सभा का गठन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ। इसमें कुल 389 सदस्य थे:
292 ब्रिटिश भारतीय प्रांतों से चुने गए,
93 देशी रियासतों से नामित,
4 आयुक्त क्षेत्रों से।
चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं, बल्कि प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा हुआ। कांग्रेस को 208 और मुस्लिम लीग को 73 सीटें मिलीं। मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया और विभाजन के बाद सदस्य संख्या 299 रह गई, जो अंततः 284 हो गई।
निर्माण प्रक्रिया
प्रथम बैठक: 9 दिसंबर 1946 को, अस्थायी अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में।
स्थायी अध्यक्ष: 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद चुने गए।
उद्देश्य प्रस्ताव: 13 दिसंबर 1946 को पंडित नेहरू ने पेश किया, जो 22 जनवरी 1947 को पारित हुआ और प्रस्तावना का आधार बना।
प्रारूप समिति: बी.एन. राव ने पहला प्रारूप (243 अनुच्छेद, 13 अनुसूचियाँ) तैयार किया। डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने इसे संशोधित किया। अंतिम संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं।
अंगीकरण: 26 नवंबर 1949 को 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। कुछ प्रावधान तत्काल लागू हुए, शेष 26 जनवरी 1950 को (गणतंत्र दिवस)।
भारतीय संविधान की पवित्रता: गीता, कुरान, बाइबिल के समान
भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया गया, जिसे 2015 से संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को लागू होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व है। सन1929 में नेहरू ने पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था, जिसे 1930 से 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।
संविधान को गीता, कुरान, बाइबिल जितना पवित्र मानने के कारण:
अधिकारों का स्रोत: यह हमें नागरिक बनाता है, प्रजा से मुक्ति दिलाता है। समानता, स्वतंत्रता, और गरिमामय जीवन का अधिकार देता है।
सामाजिक सुधार: अस्पृश्यता, बंधुआ मजदूरी, बलात् धर्म परिवर्तन जैसी कुरीतियों को खत्म करता है।
समानता और न्याय: कानून का शासन स्थापित करता है; सभी को समान अवसर और संरक्षण देता है।
महिलाओं का उत्थान: उन्हें मताधिकार और उच्च पदों तक पहुँचने का अधिकार देता है।
आर्थिक न्याय: गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान सुनिश्चित करता है।
कर्तव्य और जिम्मेदारी: नागरिकों को कर्तव्यों का बोध कराता है।
डॉ. अंबेडकर ने कहा, "संविधान कितना भी अच्छा हो, उसे संचालित करने वाले बुरे हों तो वह बुरा साबित होगा।" यदि ईश्वर भी लोक कल्याणकारी राज्य बनाएँ, तो वे संविधान जैसे ही प्रावधान बनाएँगे। अतः यह पवित्र ग्रंथों जितना पूजनीय है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना: महत्व और दर्शन
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। 13 दिसंबर 1946 को नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव 22 जनवरी 1947 को पारित हुआ और संविधान की प्रस्तावना बना। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का अभिन्न अंग और मूल ढांचे का हिस्सा माना है। यह चार भागों में बँटी है:
सत्ता का स्रोत: "हम भारत के लोग" से स्पष्ट होता है कि संप्रभुता जनता में निहित है।
शासन का स्वरूप: संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य।
उद्देश्य: न्याय (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक), स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, धर्म), समता (प्रतिष्ठा, अवसर), बंधुता (राष्ट्रीय एकता, गरिमा)।
अंगीकरण की तिथि: 26 नवंबर 1949।
डॉ. सुभाष कश्यप के अनुसार, "प्रस्तावना संविधान की आत्मा और आधारशिला है।" यह संविधान के मूल दर्शन को प्रतिबिंबित करती है।
भारतीय संविधान के स्रोत
भारत शासन अधिनियम 1935: संघीय ढांचा, राज्यपाल, तीन सूचियाँ।
ब्रिटिश संविधान: संसदीय प्रणाली, विधि का शासन, स्पीकर।
अमेरिकी संविधान: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनर्विलोकन।
कनाडाई संविधान: अवशिष्ट शक्तियाँ संघ के पास।
आयरलैंड संविधान: नीति निदेशक तत्व।
ऑस्ट्रेलियाई संविधान: समवर्ती सूची।
जर्मन संविधान: आपातकालीन प्रावधान।
जापानी संविधान: "विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया"।
फ्रांसीसी संविधान: स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व।
सोवियत संविधान: मौलिक कर्तव्य (42वाँ संशोधन)।
दक्षिण अफ्रीकी संविधान: संशोधन प्रक्रिया।
न्यायिक निर्णय: जैसे, केशवानंद भारती वाद (मूल ढांचा)।
प्रश्नों के उत्तर
खंड-अ (1 अंक वाले प्रश्न और उत्तर)
भारतीय संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष कौन थे?
डॉ. राजेंद्र प्रसाद।
भारतीय संविधान निर्माण में कितना समय लगा?
2 साल, 11 महीने, 18 दिन।
संविधान सभा प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
डॉ. बी.आर. अंबेडकर।
अविभाजित संविधान सभा में कितने सदस्य थे?
389।
विभाजित संविधान सभा में कितने सदस्य थे?
299।
भारतीय संविधान का निर्माण कब पूरा हुआ?
26 नवंबर 1949।
भारतीय संविधान को कब लागू किया गया?
26 जनवरी 1950।
संविधान सभा का गठन किस योजना के तहत किया गया?
कैबिनेट मिशन योजना।
महात्मा गांधी ने संविधान सभा की मांग कब प्रस्तुत की?
1922 में।
संविधान सभा में कौन से महत्वपूर्ण नेता शामिल थे?
नेहरू, पटेल, अंबेडकर, प्रसाद।
संविधान सभा का पहला अधिवेशन कब हुआ?
9 दिसंबर 1946।
पंडित नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव कब पेश किया?
13 दिसंबर 1946।
संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था किस देश से आयातित है?
ब्रिटेन।
मौलिक अधिकारों की व्यवस्था किस देश के संविधान से ली गई है?
अमेरिका।
नीति निदेशक सिद्धांत किस देश से लिए गए हैं?
आयरलैंड।
42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में कौन से शब्द जोड़े गए?
समाजवादी, पंथनिरपेक्ष।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना को राजनीतिक जन्मपत्री किसने कहा?
के.एम. मुंशी।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को क्या घोषित किया गया है?
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतांत्रिक गणराज्य।
संविधान सभा का बहिष्कार किस दल ने किया?
मुस्लिम लीग।
संविधान में वर्तमान में कुल कितने अनुच्छेद और कितनी अनुसूचियाँ हैं?
470 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ (मार्च 2025 तक)।
किस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के मूलभूत ढांचे की अवधारणा प्रस्तुत की?
केशवानंद भारती वाद (1973)।
किसने कहा कि भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है?
आइवर जेनिंग्स।
संविधान सभा का चुनाव किस मत प्रणाली से हुआ?
आनुपातिक प्रतिनिधित्व।
संविधान सभा के उद्घाटन अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की?
सच्चिदानंद सिन्हा।
संविधान सभा के लिए चुनाव कब संपन्न हुए?
जुलाई 1946।
संविधान निर्माण में कितने रुपये खर्च हुए थे?
लगभग 1 करोड़ रुपये।
संविधान सभा में ब्रिटिश भारतीय प्रांतों से कितने प्रतिनिधि चुने गए थे?
292।
मूल संविधान में कुल कितने अनुच्छेद और कितनी अनुसूचियाँ थीं?
395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ।
भारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था किस देश से ली गई है?
अमेरिका।
संविधान दिवस कब मनाया जाता है?
26 नवंबर।
खंड-ब (2/3 अंक वाले प्रश्न और उत्तर)
गणतंत्र से क्या अभिप्राय है?
गणतंत्र का अर्थ है कि देश का राष्ट्राध्यक्ष वंशानुगत न होकर जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। भारत में राष्ट्रपति इसका उदाहरण है।
हमें संविधान की क्या आवश्यकता है? या संविधान के कोई तीन कार्य लिखिए।
संविधान की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह:
(i) सरकार को नियम और ढांचा प्रदान करता है,
(ii) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है,
(iii) सरकार के विभिन्न अंगों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखता है।
संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है?
प्रस्तावना संविधान का मूल दर्शन और उद्देश्य दर्शाती है। यह शासन के स्वरूप (लोकतांत्रिक, गणराज्य) और लक्ष्यों (न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता) को स्पष्ट करती है। यह संविधान की आत्मा है।
लिखित और अलिखित संविधान का क्या अर्थ है?
लिखित संविधान एक औपचारिक दस्तावेज होता है जिसमें सभी नियम स्पष्ट लिखे होते हैं, जैसे भारत का। अलिखित संविधान परंपराओं और प्रथाओं पर आधारित होता है, जैसे ब्रिटेन का।
नमनीय और कठोर संविधान का क्या अर्थ है?
नमनीय संविधान आसानी से संशोधित हो सकता है, जैसे ब्रिटेन का। कठोर संविधान में संशोधन जटिल प्रक्रिया से होता है, जैसे अमेरिका का। भारत का संविधान दोनों का मिश्रण है।
भारतीय संविधान की महत्वपूर्ण विशेषताएं लिखिए।
(i) संघात्मक ढांचा, (ii) संसदीय शासन प्रणाली, (iii) मौलिक अधिकार और कर्तव्य, (iv) नीति निदेशक तत्व, (v) स्वतंत्र न्यायपालिका।
भारतीय संविधान निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
संविधान सभा का गठन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ। पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया, जो 22 जनवरी 1947 को पारित हुआ। बी.एन. राव ने पहला प्रारूप तैयार किया, जिसे अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने संशोधित किया। 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
शासकों की सीमा का निर्धारण संविधान के लिए क्यों जरूरी है?
यह निरंकुशता रोकने, नागरिकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी है।
क्या ऐसा कोई संविधान हो सकता है, जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
हाँ, तानाशाही शासन में ऐसा संभव है, पर लोकतंत्र में संविधान नागरिकों को अधिकार देना अनिवार्य है।
भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
(i) भारत शासन अधिनियम 1935 (संघीय ढांचा), (ii) ब्रिटिश संविधान (संसदीय प्रणाली), (iii) अमेरिकी संविधान (मौलिक अधिकार), (iv) आयरलैंड संविधान (नीति निदेशक तत्व), (v) कनाडाई संविधान (अवशिष्ट शक्तियाँ)।
खंड-स (4 अंक वाले प्रश्न और उत्तर)
किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो तो क्या होगा?
शक्तियों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट निर्धारण सरकार के अंगों (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका) के बीच टकराव रोकता है और शासन को सुचारु बनाता है। बिना इसके अराजकता, शक्ति का दुरुपयोग और नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा।
संविधान में शक्तियों का बंटवारा इस प्रकार किया गया है कि इसमें उलटफेर मुश्किल है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
भारतीय संविधान में शक्तियाँ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलित हैं। संशोधन प्रक्रिया कठिन होने से यह स्थिर रहता है, जिससे कोई एक अंग निरंकुश न हो सके।
संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई क्योंकि इनका निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं हुआ था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
असहमत। संविधान सभा के सदस्य प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने गए, जो जनता के प्रतिनिधि थे। अप्रत्यक्ष चुनाव होने के बावजूद सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व था।
संविधान में कोई मौलिकता नहीं है, क्योंकि इसका अधिकांश भाग दूसरे देशों से नकल किया गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
असहमत। भले ही प्रावधान विदेशी संविधानों से लिए गए, इन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाला गया। यह संशोधन और संतुलन ही इसकी मौलिकता है।
भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा देने में सफल रहा है। क्या आप इस बात से सहमत हैं?
हाँ। स्वतंत्रता, समानता, मौलिक अधिकार, स्वतंत्र न्यायपालिका और नियमित चुनाव इसके प्रमाण हैं।
संविधान असफल नहीं हुआ, हमने इसे असफल बनाया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
हाँ। संविधान ने मजबूत ढांचा दिया, लेकिन इसका कार्यान्वयन कमजोर होने और भ्रष्टाचार के कारण यह प्रभावी नहीं हो सका।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
प्रस्तावना में सत्ता का स्रोत (जनता), शासन का स्वरूप (लोकतांत्रिक गणराज्य), और उद्देश्य (न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता) शामिल हैं। यह संविधान का दर्शन और आत्मा है।
क्या भारतीय संविधान को वकीलों का स्वर्ग कहना उचित है?
हाँ। इसकी जटिलता, व्याख्या की गुंजाइश और न्यायिक प्रक्रियाएँ वकीलों के लिए व्यापक अवसर प्रदान करती हैं।
संविधान एक जीवंत दस्तावेज है। इस कथन पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
संविधान एक जीवंत दस्तावेज है क्योंकि यह समय के साथ बदलाव को स्वीकार करता है। 42वें संशोधन (1976) जैसे बदलावों से यह सामाजिक-आर्थिक जरूरतों के अनुरूप ढलता है। न बहुत कठोर और न बहुत लचीला होने के कारण यह प्रासंगिक बना रहता है। यह समाज की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।
भारतीय संविधान गीता, कुरान, बाइबिल जितना पवित्र है। इस कथन की विवेचना कीजिए।
संविधान नागरिकों को गरिमामय जीवन, समानता और स्वतंत्रता देता है। यह सामाजिक बुराइयों को खत्म करता है और न्याय की स्थापना करता है। जिस तरह धार्मिक ग्रंथ जीवन को दिशा देते हैं, संविधान भी समाज को मार्गदर्शन देता है। अतः यह पवित्रता के योग्य है।
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