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12th Political Science Complete Notes

  📘 Part A: Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति) The Cold War Era (शीत युद्ध का दौर) The End of Bipolarity (द्विध्रुवीयता का अंत) US Hegemony in World Politics ( विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व ) Alternative Centres of Power ( शक्ति के वैकल्पिक केंद्र ) Contemporary South Asia ( समकालीन दक्षिण एशिया ) International Organizations ( अंतर्राष्ट्रीय संगठन ) Security in the Contemporary World ( समकालीन विश्व में सुरक्षा ) Environment and Natural Resources ( पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन ) Globalisation ( वैश्वीकरण ) 📘 Part B: Politics in India Since Independence (स्वतंत्रता के बाद भारत में राजनीति) Challenges of Nation-Building (राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ) Era of One-Party Dominance (एक-दलीय प्रभुत्व का युग) Politics of Planned Development (नियोजित विकास की राजनीति) India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) Challenges to and Restoration of the Congress System ( कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना ) The Crisis of Democratic...

FTA with Britain: India's Leap Towards Global Economic Leadership

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता: आर्थिक सहयोग से रणनीतिक साझेदारी तक


भूमिका: आर्थिक सहयोग की नई दिशा

भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement – FTA) पर हाल ही में हुए हस्ताक्षर ने वैश्विक दक्षिण और विकसित पश्चिम के मध्य संबंधों को एक नई परिभाषा दी है। यह केवल द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पुनर्संरेखण है — जो दोनों देशों की वैश्विक दृष्टि, साझी विरासत और समकालीन आर्थिक आवश्यकताओं को समाहित करता है।


पृष्ठभूमि: ऐतिहासिक और भू-आर्थिक संदर्भ

ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन ने अपने व्यापारिक साझेदारों की पुनर्संरचना शुरू की, और भारत उसके इंडो-पैसिफिक एजेंडे का केन्द्रीय हिस्सा बना। जनवरी 2022 में शुरू हुई वार्ताएं लगभग 14 दौर की बातचीत के बाद आज ऐतिहासिक रूप से पूर्णता तक पहुँची हैं।

यह समझौता कॉमनवेल्थ की साझा ऐतिहासिक विरासत को आर्थिक सुदृढ़ता में परिवर्तित करने की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।


प्रमुख प्रावधान और सहमतियाँ

  1. वस्तुओं पर शुल्क-मुक्त व्यापार: दोनों देशों ने लगभग 90% वस्तुओं पर आयात-निर्यात शुल्क हटाने पर सहमति व्यक्त की है। भारत से कपड़ा, रत्न-आभूषण, फार्मा और ऑटोमोबाइल निर्यात को लाभ मिलेगा, वहीं ब्रिटेन से व्हिस्की, चिकित्सा उपकरण और शिक्षा सेवाएं भारत में आसान पहुँच पाएंगी।

  2. सेवाओं में सहजता: पेशेवरों के वीजा कोटा में वृद्धि, IT और वित्तीय सेवाओं को पारस्परिक मान्यता, और स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग के रास्ते खोले गए हैं।

  3. डिजिटल व्यापार और डेटा संरक्षण: डिजिटल अर्थव्यवस्था, साइबर सुरक्षा, डेटा स्टोरेज और क्रॉस-बॉर्डर ट्रांसफर पर संतुलित नीति ढांचे की सहमति बनी है।

  4. निवेश और बौद्धिक संपदा: नवाचार, R&D, स्टार्टअप सहयोग और IP अधिकारों की पारदर्शी व्यवस्था स्थापित की गई है।


भारत के लिए संभावनाएँ

  • निर्यात को बढ़ावा: वस्त्र, दवाएं, ऑटोमोटिव, आभूषण और आईटी सेवाओं के लिए नया बाजार खुला है।
  • रोजगार निर्माण: MSMEs और SEZs के विस्तार से रोजगार सृजन को गति मिलेगी।
  • FDI प्रवाह: ब्रिटेन से उच्च प्रौद्योगिकी, ग्रीन एनर्जी और शिक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में स्थान: भारत वैश्विक उत्पादन केंद्र (manufacturing hub) के रूप में उभरने की दिशा में अग्रसर होगा।

ब्रिटेन के लिए लाभ

  • एशियाई बाजार तक पहुँच: 140 करोड़ की आबादी वाले भारतीय उपभोक्ता वर्ग तक सीधी पहुँच।
  • रणनीतिक स्थिति को मजबूती: भारत के साथ व्यापारिक संबंधों से ब्रिटेन की इंडो-पैसिफिक रणनीति को बल मिलेगा।
  • ब्रेक्सिट के बाद संतुलन: यूरोपीय संघ के बाहर व्यापारिक विविधता की दिशा में भारत एक विश्वसनीय भागीदार सिद्ध हो सकता है।

संभावित चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

  1. स्थानीय उद्योगों पर दबाव: विशेषकर डेयरी, कृषि और कुटीर उद्योगों पर विदेशी प्रतिस्पर्धा का संकट गहरा सकता है।
  2. विज्ञ वीज़ा नीति: सेवा क्षेत्र के पूर्ण लाभ के लिए वीजा प्रक्रिया में अपेक्षित लचीलापन आवश्यक होगा।
  3. बाजार एकाधिकार की आशंका: बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सशक्त उपस्थिति स्थानीय व्यापार को हानि पहुँचा सकती है।
  4. पर्यावरण और श्रमिक मानक: ब्रिटेन उच्च मानकों की अपेक्षा कर सकता है, जो भारतीय उद्योगों के लिए अनुपालन में चुनौती बन सकते हैं।

रणनीतिक निहितार्थ

यह समझौता केवल व्यापारिक लाभों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की वैश्विक आर्थिक नेतृत्व की भूमिका को सुदृढ़ करता है। यह क्वाड (QUAD), IPEF, और ब्रिटेन की "इंडो-पैसिफिक टिल्ट" नीति का विस्तार है, जिससे दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को नई ऊँचाई मिली है।


नैतिक एवं सामाजिक विमर्श

यह आवश्यक है कि इस समझौते का लाभ केवल बड़े निर्यातकों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक सीमित न रह जाए। सरकार को चाहिए कि वह कृषकों, कारीगरों, छोटे उद्यमों और श्रमिक वर्ग के लिए सुरक्षा और सशक्तिकरण की योजनाएं सुनिश्चित करे — ताकि "सर्वहिताय, सर्वसुखाय" का आदर्श साकार हो सके।


निष्कर्ष: साझेदारी से सह-अस्तित्व की ओर

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता एक नवीन आर्थिक अध्याय की शुरुआत है, जिसमें व्यापार, रणनीति और संस्कृति का संगम दिखाई देता है। यदि इसे संतुलन, पारदर्शिता और समावेशी विकास की भावना से क्रियान्वित किया जाए, तो यह द्विपक्षीय संबंधों को एक सार्थक, टिकाऊ और नैतिक साझेदारी में बदल सकता है।



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