राज्य के नीति निदेशक तत्व: कल्याणकारी राज्य का मार्गदर्शक दर्शन प्रस्तावना: संविधान की आत्मा का जीवंत हिस्सा भारतीय संविधान का भाग 4, जो अनुच्छेद 36 से 51 तक फैला है, 'राज्य के नीति निदेशक तत्व' (Directive Principles of State Policy – DPSPs) का खजाना है। ये तत्व भारत को एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की ओर ले जाने का सपना दिखाते हैं, जहाँ न केवल राजनीतिक आज़ादी हो, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी हर नागरिक तक पहुँचे। ये तत्व भले ही अदालतों में लागू करवाने योग्य न हों, लेकिन ये संविधान की उस चेतना को दर्शाते हैं जो भारत को समता, न्याय और बंधुत्व का देश बनाने की प्रेरणा देती है। यह संपादकीय लेख भाग 4 के महत्व, इसके ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भ, इसकी उपलब्धियों और चुनौतियों को सरल, रुचिकर और गहन तरीके से प्रस्तुत करता है। आइए, इस यात्रा में शामिल हों और समझें कि कैसे ये तत्व आज भी भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: स्वतंत्र भारत का नीतिगत सपना जब भारत ने 1947 में आज़ादी हासिल की, तब संविधान निर्माताओं के सामने एक सवाल था: स्वतंत्र भारत कैसा होगा? क्या वह केवल औपनिवे...
प्रश्न 1. 1960 का दशक 'खतरनाक दशक' क्यों माना जाता है? उत्तर- 1960 के दशक को युद्ध ,गंभीर आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन जैसी कुछ अनसुलझे समस्याओं के कारण 'खतरनाक दशक' के रूप में लेबल किया गया है, जो लोकतांत्रिक परियोजना की विफलता और यहां तक कि देश के विघटन का कारण बन सकता था। 1- गंभीर आर्थिक संकट: भारत-चीन युद्ध 1962 व भारत-पाक युद्ध 1965 के कारण गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। सरकार ने इसे रोकने के लिए भारतीय रुपये का अवमूल्यन करने का निर्णय लिया, लेकिन इससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई। 2- दो प्रधानमंत्रियों को देश ने खोया: कांग्रेस और देश ने बहुत कम समय में दो प्रधानमंत्रियों को खो दिया। नई प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी एक राजनीतिक नौसिखिया थीं। 3- चौथा आम चुनाव - एक राजनीतिक भूकंप: चौथा आम चुनाव 1967 एक राजनीतिक भूकंप साबित हुआ क्योंकि इसने कांग्रेस को राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर झटका दिया। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के अधिकांश वरिष्ठ नेता और मंत्री चुनाव हार गए। 4- गंभीर ...