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12th Political Science Complete Notes

  📘 Part A: Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति) The Cold War Era (शीत युद्ध का दौर) The End of Bipolarity (द्विध्रुवीयता का अंत) US Hegemony in World Politics ( विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व ) Alternative Centres of Power ( शक्ति के वैकल्पिक केंद्र ) Contemporary South Asia ( समकालीन दक्षिण एशिया ) International Organizations ( अंतर्राष्ट्रीय संगठन ) Security in the Contemporary World ( समकालीन विश्व में सुरक्षा ) Environment and Natural Resources ( पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन ) Globalisation ( वैश्वीकरण ) 📘 Part B: Politics in India Since Independence (स्वतंत्रता के बाद भारत में राजनीति) Challenges of Nation-Building (राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ) Era of One-Party Dominance (एक-दलीय प्रभुत्व का युग) Politics of Planned Development (नियोजित विकास की राजनीति) India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) Challenges to and Restoration of the Congress System ( कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना ) The Crisis of Democratic...

French and Portuguese Territories



🇮🇳 उपनिवेशों का भारत में एकीकरण: कूटनीति, कानून और सैन्य नीति का संतुलन

सम्पादकीय :UPSC GS Mains दृष्टिकोण

“भौगोलिक एकता केवल सीमाओं का विस्तार नहीं, बल्कि संप्रभुता और आत्मनिर्णय का स्पष्ट घोषणापत्र होती है।”


दो रणनीतियों की कथा

1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत के समक्ष जो सबसे बड़ी चुनौतियाँ थीं, उनमें से एक थी — विदेशी उपनिवेशों का शांतिपूर्ण और सम्मानजनक विलय। जहाँ एक ओर फ्रांस ने समझदारी और संवाद का मार्ग अपनाया, वहीं पुर्तगाल ने अपने उपनिवेशवादी भ्रम को त्यागने से इनकार किया। नतीजतन, भारत को दोनों स्थितियों में भिन्न रणनीतियाँ अपनानी पड़ीं — एक ओर राजनयिक सहमति, तो दूसरी ओर सैन्य हस्तक्षेप


फ्रांसीसी दृष्टिकोण: सहमति और संधि

भारत में फ्रांसीसी उपनिवेश — पांडिचेरी, कराइकल, माहे, यानम और चंद्रनगर — भारत में शांतिपूर्ण ढंग से विलय हुए।
1948 में भारत-फ्रांस के बीच हुए समझौते के अनुसार, इन क्षेत्रों का भविष्य स्थानीय जनता की इच्छा पर निर्भर होगा।

  • चंद्रनगर ने 1949 में जनमत संग्रह द्वारा भारत में विलय का निर्णय लिया।
  • 1954 में पांडिचेरी व अन्य क्षेत्रों का "de facto" हस्तांतरण भारत को हुआ।
  • 1956 में भारत-फ्रांस के बीच "विलय संधि" (Treaty of Cession) पर हस्ताक्षर हुए।
  • अंततः 1962 में फ्रांसीसी संसद ने संधि की पुष्टि की, और भारत ने इन क्षेत्रों पर कानूनी नियंत्रण प्राप्त किया।

इस प्रक्रिया में भारत ने संस्कृति, भाषा और स्थानीय पहचान का सम्मान किया। आज भी पांडिचेरी में फ्रांसीसी भाषा और संस्कृति जीवित है — यह भारत की संवेदनशील और संतुलित कूटनीति का प्रमाण है।


पुर्तगाली समस्या: हठ और हस्तक्षेप

इसके विपरीत, पुर्तगाल ने गोवा, दमन और दीव पर अपने अधिकार को छोड़ने से इनकार कर दिया।
पुर्तगाल ने इन्हें “Overseas Province” घोषित कर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत की दावेदारी को अस्वीकार कर दिया।

कूटनीतिक प्रयासों की विफलता के बाद भारत ने दिसंबर 1961 में "ऑपरेशन विजय" के तहत सैन्य कार्रवाई की।
यह अभियान मात्र 36 घंटे में सफल रहा और गोवा समेत पुर्तगाली क्षेत्रों को भारत में शामिल कर लिया गया।
यद्यपि पश्चिमी देशों ने आलोचना की, परंतु गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों और उपनिवेश विरोधी आंदोलनों ने भारत के कदम को न्यायोचित और नैतिक ठहराया।


कानूनी वैधता बनाम नैतिक अधिकार

यह पूरा घटनाक्रम भारत की दोहरी नीति को दर्शाता है — जहाँ संभव हो, संवाद से समाधान; और जहाँ आवश्यक हो, संप्रभुता की निर्णायक रक्षा।

फ्रांसीसी उपनिवेशों के मामले में भारत ने अंतरराष्ट्रीय विधियों और जनता की इच्छा का सम्मान किया, जबकि पुर्तगाली मामलों में राष्ट्रीय अखंडता के लिए सैन्य हस्तक्षेप को अंतिम विकल्प माना।

1962 में गोवा को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और 1987 में उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।


राज्य-नीति के सबक

यह दोहरे अनुभव हमें कुछ महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं:

  • जहाँ संवाद संभव हो, वहाँ कूटनीति सर्वोत्तम माध्यम है।
  • जहाँ संप्रभुता खतरे में हो, वहाँ निर्णायक नीति आवश्यक है।
  • संविधान और अंतरराष्ट्रीय नैतिकता दोनों में संतुलन आवश्यक है।

भारत ने पांडिचेरी में फ्रेंच विरासत को बनाए रखा और गोवा की लुसोफोन संस्कृति को भी समाहित किया — यह भारत के संस्कृतिक बहुलवाद और समावेशन की मिसाल है।


निष्कर्ष: एक भारत, पूर्ण भारत

फ्रांसीसी और पुर्तगाली उपनिवेशों का भारत में एकीकरण भारत की राजनयिक परिपक्वता, कानूनी प्रतिबद्धता और रणनीतिक दृढ़ता का सशक्त उदाहरण है।
यह प्रक्रिया केवल भौगोलिक विस्तार नहीं थी, बल्कि भारत के उस स्वप्न का साकार रूप थी, जिसमें हर भूखंड संप्रभु, लोकतांत्रिक और अखंड गणराज्य का अभिन्न अंग हो।

“विलय की यह गाथा भारत की एकता, विविधता और दृढ़ नीतिगत संकल्प की कहानी है — एक ऐसे राष्ट्र की, जो शांति चाहता है, पर संप्रभुता से कभी समझौता नहीं करता।”


📘 UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह विषय भारत के "Post-Independence Consolidation", "International Relations" और "Ethical Statecraft" के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।




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