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12th Political Science Complete Notes

  📘 Part A: Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति) The Cold War Era (शीत युद्ध का दौर) The End of Bipolarity (द्विध्रुवीयता का अंत) US Hegemony in World Politics ( विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व ) Alternative Centres of Power ( शक्ति के वैकल्पिक केंद्र ) Contemporary South Asia ( समकालीन दक्षिण एशिया ) International Organizations ( अंतर्राष्ट्रीय संगठन ) Security in the Contemporary World ( समकालीन विश्व में सुरक्षा ) Environment and Natural Resources ( पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन ) Globalisation ( वैश्वीकरण ) 📘 Part B: Politics in India Since Independence (स्वतंत्रता के बाद भारत में राजनीति) Challenges of Nation-Building (राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ) Era of One-Party Dominance (एक-दलीय प्रभुत्व का युग) Politics of Planned Development (नियोजित विकास की राजनीति) India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) Challenges to and Restoration of the Congress System ( कांग्रेस प्रणाली की चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना ) The Crisis of Democratic...

11th राजनीति विज्ञान : धर्मनिरपेक्षता

यह पाठ NCERT की कक्षा 11 की "राजनीतिक सिद्धांत" पुस्तक के "धर्मनिरपेक्षता" अध्याय से लिया गया है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा, उसकी आवश्यकता और इसके विभिन्न सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। नीचे इस पाठ के मुख्य बिंदुओं का विश्लेषण प्रस्तुत है:

धर्मनिरपेक्षता क्या है?

परिभाषा:

धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा सिद्धांत है जो सभी प्रकार के धार्मिक प्रभुत्व और भेदभाव का विरोध करता है।

यह केवल अंतर-धार्मिक प्रभुत्व (जहां एक धर्म दूसरे धर्म पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करता है) का विरोध नहीं करता, बल्कि अंतःधार्मिक प्रभुत्व (जहां धर्म के भीतर असमानता और भेदभाव होता है) का भी विरोध करता है।

अंतर-धार्मिक प्रभुत्व:

पाठ में 1984 के सिख दंगे, कश्मीरी पंडितों का पलायन और 2002 के गुजरात दंगे जैसे उदाहरण दिए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि धार्मिक पहचान के आधार पर कैसे हिंसा और भेदभाव होता है।

धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य ऐसी परिस्थितियों का विरोध करना और हर नागरिक को गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार सुनिश्चित करना है।

अंतःधार्मिक प्रभुत्व:

यह केवल धर्मों के बीच का संघर्ष नहीं है, बल्कि धर्मों के भीतर मौजूद भेदभाव को भी इंगित करता है।

उदाहरण:

लैंगिक असमानता: अधिकांश धर्मों में महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता का अभाव है।

जातिगत भेदभाव: हिंदू धर्म में जाति आधारित भेदभाव और छुआछूत।

धार्मिक कट्टरता: रूढ़िवादी समूह अक्सर धर्म के नाम पर असमानता और भेदभाव बढ़ाते हैं।

धर्मनिरपेक्षता इन समस्याओं का समाधान करते हुए समानता और स्वतंत्रता का प्रसार करना चाहती है।

धर्मनिरपेक्षता के व्यापक उद्देश्य:

धर्मनिरपेक्षता केवल राज्य और धर्म के बीच अलगाव की बात नहीं करती, बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि:

धर्म का उपयोग भेदभाव और हिंसा के लिए न हो।

सभी धर्मों और उनके अनुयायियों के बीच समानता हो।

धर्मों के भीतर कट्टरता और अन्यायपूर्ण प्रथाओं को समाप्त किया जाए।

राज्य और धर्म का संबंध:

राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह किसी भी धर्म का पक्षधर न हो और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करे।

राज्य को न केवल धार्मिक समुदायों के बीच, बल्कि धर्मों के भीतर भी समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देनी चाहिए।

निष्कर्ष:

धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा सामाजिक और राजनीतिक दर्शन है, जो स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के सिद्धांतों पर आधारित है। यह न केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करता है, बल्कि धर्मों के भीतर समानता और स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करता है।

पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता का मॉडल

मुख्य विशेषताएं:

राज्य और धर्म के बीच परस्पर निषेध (Mutual Exclusion) पर आधारित।

राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता और धर्म राज्य के मामलों में दखल नहीं देता।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर:

यह मॉडल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता पर केंद्रित है।

धार्मिक समुदायों को कोई विशेष अधिकार या संरक्षण प्रदान नहीं किया जाता।

अल्पसंख्यकों के अधिकारों की अनदेखी:

चूंकि पश्चिमी समाज ऐतिहासिक रूप से धार्मिक रूप से समरूप (homogeneous) रहे हैं, इसलिए धार्मिक समानता पर कम ध्यान दिया गया है।

धार्मिक सुधार में राज्य की भूमिका का अभाव:

राज्य, भले ही धार्मिक प्रथाएं भेदभावपूर्ण हों, उसमें हस्तक्षेप नहीं करता।

उदाहरण: यदि कोई धर्म महिलाओं को पुजारी बनने से रोकता है, तो राज्य इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।

इस मॉडल की सीमाएं:

सामुदायिक अधिकारों की कमी:

यह मॉडल धार्मिक समुदायों के अधिकारों के लिए कम स्थान देता है।

धार्मिक असमानता की अनदेखी:

केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित करने से धार्मिक समूहों के बीच असमानताएं बनी रहती हैं।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता का विश्लेषण:

भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी मॉडल की नकल नहीं है। यह भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं के अनुरूप विकसित एक अनूठा मॉडल है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ:

1. समान धार्मिक स्वतंत्रता:

यह केवल धर्म और राज्य के अलगाव तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत और सामुदायिक धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देती है।

यह किसी भी धर्म का समर्थन नहीं करती, लेकिन धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करती है।

2. अंतर-धार्मिक और अंतःधार्मिक समानता:

यह धर्मों के बीच और धर्मों के भीतर समानता सुनिश्चित करती है।

जैसे, दलितों और महिलाओं के साथ भेदभाव को असंवैधानिक माना गया है।

3. राज्य द्वारा धार्मिक सुधार:

भारतीय संविधान ने धार्मिक सुधारों के लिए राज्य की भागीदारी का प्रावधान किया है।

जैसे अस्पृश्यता का उन्मूलन और बाल विवाह पर प्रतिबंध।

4. अल्पसंख्यकों के अधिकार:

अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करने और अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार है।

आलोचनाएं और उनका बचाव:

1. धर्म विरोधी होने का आरोप:

धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य धर्म का विरोध नहीं है, बल्कि धार्मिक भेदभाव और असमानताओं का विरोध करना है।

2. पश्चिमी मॉडल का प्रभाव:

भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोणों को मिलाकर एक अनोखा मॉडल तैयार किया है।

3. अल्पसंख्यकों का पक्ष लेने का आरोप:

यह अधिकार अल्पसंख्यकों को उनकी संस्कृति और अस्तित्व की रक्षा के लिए दिए गए हैं, न कि किसी विशेष धर्म का समर्थन करने के लिए।

4. राज्य का अत्यधिक हस्तक्षेप:

राज्य का हस्तक्षेप "सिद्धांत आधारित दूरी" के तहत किया जाता है, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य केवल धर्मों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि समाज में समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करना है।

यह भारतीय लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और एक सफल समाज के निर्माण में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।


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